Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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बंद करवाया और समाज को शिक्षित एवं संस्कारी बनाने के लिए अपने अन्तेवासी प्रशिष्य आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वरजी महाराज को सरस्वती मंदिर बनाने की प्रेरणा की।
___ उनके जीवन का प्रमुख सिद्धान्त था- सच्चा सो मेरा, मेरा सो सच्चा नहीं । वे जीवन पर्यन्त सत्य का अवगाहन करते रहे, सत्य के प्रचार के लिए और सत्य की प्रतिष्ठा के लिए ही जूझते रहे।
अपनी दीक्षा के बीस वर्ष के बाद उन्हें इस सत्य की प्रतीति हुई कि मैं जिस मार्ग का अनुसरण कर रहा हूं, वह सत्य नहीं है, तब उन्होंने उस मार्ग का ही परित्याग कर दिया। जिस सम्प्रदाय विशेष में वे दीक्षित थे उस सम्प्रदाय में उनका सर्वोच्च स्थान था, उनके आदर और सम्मान में कोई कमी नहीं थी, पर इस उच्च स्थान और आदर-सम्मान से भी बढ़कर उनके लिए सत्य का महत्व अधिक था। सत्य के विषय में उनका कहना था कि मैं सत्य का पुजारी हूं और सत्पथ से मुझे कोई डिगा नहीं सकता। मैं वही कहूंगा जो सत्य है, मैं उसे ही मानूंगा जो सत्य है । सत्य को प्रकट करने में मुझे कोई हिचक नहीं है।
___ 'मैं किसी गुरु या दादा गुरु का बंधा नहीं हूं। मेरे लिए तो भगवान महावीर स्वामी के शासन के शास्त्रों का मानना ही ठीक है । यदि किसी के पिता या पितामह कुएं में गिरे थे तो क्या उसके पुत्र को भी उसमें गिरना चाहिए?'
उनकी इस स्वर्गारोहण शताब्दी पर हम उनका जीवन संदेश सुने । उनके जीवन संदेश का अनुसरण करें। उनका पुनर्मूल्यांकन करें । जैन धर्म को वे विश्व रंगमंच पर रखना चाहते थे, प्रत्येक जैन बालक को वे जैन धर्म से शिक्षित और संस्कारी बनाना चाहते थे, वे जैन धर्म का सर्वत्र प्रभाव देखना चाहते थे, जैन धर्म के साहित्य का वे प्रचार और प्रसार करना चाहते थे। हम उनकी भावनाओं, प्रेरणाओं, विचारों एवं स्वप्नों को साकार करने का संकल्प करें । उनके प्रति हमारी यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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