Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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श्री विजयानंद सूरि
- आचार्य श्री विजय समुद्र सूरि आत्मारामनन्द प्रदं वन्द्य-आत्मानन्द जगद् गुरुम् । वंदेहं विश्ववन्द्य च वल्लभं लोकवल्लभम् ॥ है सत्य आत्माराम यदि इस भूमि पर आते नहीं, तो आज ऐसी जैन संस्था देख हम पाते नहीं ॥ जिस की दया से पुस्तकालय और विद्यालय बने, कैसे न आत्माराम वह संसार प्रेमालय बने । वे धन्य विजयान्द सूरि त्यागियों में गेय थे,
जिन धर्म के आधेय थे, सुश्रावकों के ध्येय थे । आदर्शजीवी महापुरुषों की पुण्य श्लोक अमर जीवन गाथा में कई एक असाधारण विशेषताएं होती है । सांसारिक प्रलोभनों का त्याग, निजी स्वार्थों का बलिदान, लोक कल्याण की भावना, विशाल मनोवृति, अव्याहत सत्यनिष्ठा और निर्निमेष अध्यात्म जागृति आदि अनेक विशेषताओं का वह संगम स्थान होती है जिसके समीप उपस्थित होने वाले विकासगामी साधकों को अपनी प्रगति के लिए प्रोत्साहन मिलता है । इतना ही नहीं किन्तु वह मानव जगत की डगमगाती हुई जीवन नौका को संसार सागर से पार करने में एक चतुर कर्णधार का काम देती है। विषयवासना सन्तप्त प्राणी समुदाय की शान्त्वना और शान्ति प्रदान करती एवं उन्मार्गगामी जीवों को सन्मार्ग की ओर प्रस्थान करने की सतत प्रेरणा भी उससे मिलती है इसलिए महापुरुषों
श्री विजयानंद रि
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