Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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चतुर्दश पूर्वधर आर्यभद्रबाहु की कृति होती तो उनमें इन नामों के उल्लेख सम्भव नहीं थे।
२. इसी प्रकार पिण्डनियुक्ति की गाथा ४९८ में पादलिप्ताचार्य का एवं गाथा ५०३ से ५०५ में वज्रस्वामी के मामा समितसूरि२६ का उल्लेख है साथ ही ब्रह्मदीपकशाखा का उल्लेख भी है—ये तथ्य यही सिद्ध करते हैं कि पिण्डनियुक्ति भी चतुर्दश पूर्वधर प्राचीनगोत्रीय भद्रबाहु की कृति नहीं है, क्योंकि पादलिप्तसूरि, समितसूरि तथा ब्रह्मदीपकशाखा की उत्पत्ति ये सभी प्राचीनगोत्रीय भद्रबाहु से परवर्ती हैं।
३. उत्तराध्ययननियुक्ति की गाथा १२० में कालकाचार्य३८ की कथा का संकेत है। कालकाचार्य भी प्राचीनगोत्रीय पूर्वधर भद्रबाहु से लगभग तीन सौ वर्ष पश्चात् हुए हैं ।
४. ओघनियुक्ति की प्रथम गाथा में चतुर्दश पूर्वधर, दश पूर्वधर एवं एकादश-अंगों के ज्ञाताओं को सामान्य रूप से नमस्कार किया गया है३९, ऐसा द्रोणाचार्य ने अपनी टीका में सूचित किया है। यद्यपि मुनि श्री पुण्यविजय जी सामान्य कथन की दृष्टि से इसे असंभावित नहीं मानते हैं, क्योंकि आज भी आचार्य, उपाध्याय एवं मुनि नमस्कारमंत्र में अपने से छोटे पद और व्यक्तियों को नमस्कार करते हैं। किन्तु मेरी दृष्टि में कोई भी चतुर्दश पूर्वधर दसपूर्वधर को नमस्कार करे, यह उचित नहीं लगता । पुन: आवश्यकनियुक्ति की गाथा ७६९ में दस पूर्वधर वज्रस्वामी को नाम लेकर जो वंदन किया गया है, वह तो किसी भी स्थिति में उचित नहीं माना जा सकता है।
५. पुन: आवश्यकनियुक्ति की गाथा ७६३ से ७७४ में यह कहा गया है कि शिष्यों की स्मरण शक्ति के ह्रास को देखकर आर्य रक्षित ने, वज्रस्वामी के काल तक जो आगम अनुयोगों में विभाजित नहीं थे, उन्हें अनुयोगों में विभाजित किया।४२ यह कथन भी एक परवर्ती घटना को सूचित करता है। इससे भी यही फलित होता है कि नियुक्तियों के कर्ता चतुर्दशपूर्वधर प्राचीनगोत्रीय भद्रबाहु नहीं हैं, अपितु आर्यरक्षित के पश्चात् होने वाले कोई भद्रबाहु है।
६. दशवैकालिकनियुक्ति की गाथा ४ एवं ओघनियुक्ति की गाथा २ में चरणकरणानुयोग की नियुक्ति कहूँगा ऐसा उल्लेख है। यह भी इसी तथ्य की पुष्टि करता है कि नियुक्ति की रचना अनुयोगों के विभाजन के बाद अर्थात् आर्यरक्षित के पश्चात् हुई है।
७. आवश्यकनियुक्ति की गाथा ७७८-७८३ में तथा उत्तराध्ययन नियुक्ति की गाथा १६४ से १७८ तक में ७ निह्नवों और आठवें बोटिक मत की उत्पत्ति का उल्लेख हुआ है। अन्तिम सातवां निह्नव वीरनिर्वाण संवत् ५८४ में तथा बोटिक मत की उत्पत्ति वीरनिर्वाण संवत्
नियुक्ति साहित्य : एक पुनर्चिन्तन
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