Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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भावपूजा ये दोनों एक दूसरे से अनुप्राणित हैं—परस्पर अनुस्यूत और साध तथा गृहस्थ दोनों के लिये अनुष्टेय हैं। जैसे द्रव्यपूजा के अनन्तर स्तुतिवन्दनरूप भावपूजा गृहस्थ करता है उसी प्रकार भावस्तव के अधिकारी साधु को भी अनुमोदना रूप में द्रव्यस्तव के अनुष्ठान का अधिकार है। अर्थात् गृहस्थ के द्वारा आचरित द्रव्यस्तव-द्रव्यपूजा की अनुमोदना साधु के लिये इष्ट अथ च विहितर है। इस कथन से पूजाविधि को श्रीहरिभद्रसूरि के वचनों में जो शास्त्रीय महत्त्व प्राप्त होता है उसकी कल्पना सहज ही में की जा सकती है।
साधु के लिये अनमोदन रूप से द्रव्यस्तव का विधान करते हुए श्रीहरिभद्रसूरि ने उसका शास्त्रीय समर्थन इस प्रकार किया है
१. विषं विनिर्धूय कुवासनामयं, व्यचीचरद्य: कृपया मदाशये।
अचिन्त्यवीर्येण सुवासनासुधा नमोस्तु तस्मै हरिभद्रसूरये ॥ (उपमितिभवप्रपंच पृ. १६) येषां गिरं समुपजीव्य सुसिद्धविद्यामस्मिन् सुखेन गहनेऽपि पथि प्रवृत्तः । ते सूरयो मयि भवन्तु कृतप्रसादा: श्रीसिद्धसेनहरिभद्रमुखा: सुखाय (शास्त्रवार्ता समु. टीका)
अन्य आचार्यों के उल्लेख विस्तारभय से नहीं दिये गये। २. “थयविहिमागमसद्धं" (पंचाशक ६/१)
स्तव: पूजा तस्य विधिविधानं प्रकारा: स्तवविधिस्तम्। आगम: स्तवपरिज्ञानार्थं आप्तवचनं तेन शुद्धस्तदुक्तानुवादेन निर्दोष: आगमशुद्धस्तम् (अभयेवसूरि)
अर्थात् पूजाविधि यह आप्तवचन के अनुसार होने से निर्दोष हैं। ३. तत्तो पडिदिणपूयाविहाणओ तह तहेव कायब्बं ।
विहिताणुट्टाणं खलु भवविरहफलं जहा होति ।। (पंचा. ८/५०) (तत: प्रतिदिनं पूजाविधानत: तथा तथा इह कर्तव्यम् । विहितानष्टानं खल भवविरहफलं यथा भवति ।।) विहितानुष्ठान-पूजावन्दनयात्रास्नानादि । (अभयदेवसूरि) ४. सुत्तभणिएण विहिणा गिहिणा निव्वाणमिच्छमाणेन ।
तम्हा जिणाण पूया कायव्वा अप्पमत्तेण ॥पंचा. ४/४६) व्या. सूत्रभणितेन-आगमोक्तेन विधिना-विधानेन पूजा कर्तव्या केनेत्याह-गृहिणा-गृहस्थेन साधोरनधिकारत्वात् कि विधेनेत्याह निर्वाणं निर्वृत्तिमिच्छता, निर्वाणव्यतिरिक्तस्य फलस्योपायान्तरेणापि सुलभत्वात् । तस्माद्धेतो: जिनानामर्हतां पूजा-अर्चनं कर्तव्या-विधेया अप्रगत्तेन-अप्रमादवता प्रमादपरिहारेणेति यावत् । (अभयदेवसूरि) जिनप्रतिमा और जैनाचार्य
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