Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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६. धूर्तता ७. कृतघ्नता ८. ग्रहण शक्ति का अभाव ९. दुर्गुण दृष्टि १०. उद्दण्डता ११. प्रतिभा की कमी १२. स्मरण शक्ति का अभाव १३. धारणा शक्ति का अभाव १४. हठग्राहिता
ये सब अयोग्यता शिक्षार्थी में मानसिक कुण्ठा, तथा उच्च चारित्रिक गुणों के अभाव की सूचक है। जब तक विद्यार्थी में चारित्रिक विकास और भावात्मक गुणों की वृद्धि नहीं होती वह ज्ञान या शिक्षा ग्रहण नहीं कर सकता। आचार्य भद्रबाहु ने आवश्यक नियुक्ति में तथा विशेषावश्यक भाष्य में आचार्य जिनभद्रगणी ने अनेक प्रकार की उपमाएं देकर शिक्षार्थी की अयोग्यता का रोचक वर्णन किया है। जैसे
शैलघन-जिस प्रकार मूसलाधार मेघ बरसने पर भी पत्थर (शैल) कभी आर्द्र या मृदु नहीं हो सकता, उसी प्रकार कुछ शिष्य ऐसे होते हैं जिन पर गुरूजनों की शिक्षा का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
___ इसी प्रकार भग्नघट, चालनी के समान जो विद्यार्थी होते हैं, उन्हें गुरू ज्ञान या विद्या हैं, परन्तु उनके हृदय में वह टिक नहीं पाता। महिष-भैंसा जिस प्रकार जलाशय में घुसकर जल तो कम पीता है, परन्तु जल को गंदला बहुत करता है, उसी प्रकार कुछ विद्यार्थी, गुरूजनों से ज्ञान तो कम ले पाते हैं, परन्तु उन्हें उद्विग्न या खिन्न बहुत कर देते हैं । गुरू ज्ञान देते-देते परेशान हो जाते हैं। इसी प्रकार भेड़ों, तोता, मच्छर, बिल्ली आदि के समान जो शिष्य होते हैं वे १. आदि पुराण (भाग-१) १४०-१४८ तथा आदिपुराण (खण्ड-३) ३८/१०९-१११८ २. उत्तराध्ययन-११/३ ३. आदि पुराण-भाग-१
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श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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