Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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गुरूजनों से कुछ पूछना हो तो आसन पर बैठे-बैठे या शय्या पर पड़े-पड़े ही न पूछे, किंतु खड़ा होकर हाथ जोड़कर नम्र आसन से प्रश्न करें।
वास्तव में गुरूजनों की भक्ति और बहुमान तो विनय का एक प्रकार है, दूसरा प्रकार है शिक्षार्थ की चारित्रिक योग्यता और व्यक्तित्व की मधुरता। कहा गया है-गुरूजनों के समीप रहने वाला, योग और उपधान (शास्त्रर अध्ययन के साथ विसेष तपश्चरण (करने वाला, सब का प्रिय करने वाला और सबसे साथ प्रिय मधुर बोलने वाला, शिक्षा एवं ज्ञान प्राप्त कर सकता
है।२
गौतम की प्रश्नोत्तर शैली गुरू शिष्य के बीच प्रश्न-उत्तर की सुन्दर शैली पर गणधर गौतम का आदर्श हमारे सामने है। जब भी किसी विषय पर उनके मन में सन्देह या जिज्ञासा उत्पन्न होती है तो वे उठकर भगवान महावीर के पास आते हैं और विनय पूर्वक उनसे प्रश्न पूछते हैं। प्रश्न का समाधान पाकर व प्रसन्न होकर कृतज्ञता प्रदर्शित करते हुए कहते हैं- भन्ते ! आपने जो कहा, वह सत्य है, यथार्थ है, मैं उस पर श्रद्धा करता हूं।२
उत्तर प्रदाता गुरू के प्रति शिष्य को इतना कृतज्ञ होना चाहिए कि वह उत्तर प्राप्त कर अपनी मनस्तुति और प्रसन्नता व्यक्त करे । उनके उत्तर के प्रति अपनी श्रद्धा की अभिव्यक्ति करे।
___ एक बार गणधर इन्द्रभूति के पास भ. पार्श्वनाथ परम्परा के श्रमण उदक पेढाल आये और अनेक प्रकार के प्रश्न पूछे । इन्द्रभूति ने सभी प्रश्नों का बड़ी स्पष्टता और सहजता से उत्तर दिया, किंतु गणधर इन्द्रभूति के उत्तर से उदक पेढाल क्रुद्ध खिन्न भी हुए और वे प्रश्नों का समाधान पाकर भी गौतम का अभिवादन किये बिना, धन्यवाद या कृतज्ञता के दो शब्द भी बोले बिना उठकर चलने लगे। स्पष्टवादी गौतम को उदक पेढाल का यह व्यवहार अनुचित लगा। तब
१. अब्भुटसाणं अंजलि करणं तहेवासणदायणं, गुरूभक्ति भावसूस्माविणओ एस वियाहिओ- उत्तरा. ३०/३२ २. बस गुरूकुले निच्यं जोगवे उवहाणवं, पियं करे पियं वाई से सिक्खं लद्धूसरिहहं -उत्त. ११/१४ ३. उत्तरा. -१/१७ ४. वही-१/१८-१९
व्यक्तित्व के समग्र विकास की दिशा में 'जैन शिक्षा प्रणाली की उपयोगिता'
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