Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
View full book text
________________
६. गुणसागरसूरि के शिष्य ? लक्ष्मीसागरसूरि
(वि.सं. १५४९- १५७२) ६ प्रतिमालेख
५
मलधारगच्छीय गुणसुन्दरसूरि के शिष्य सर्वसुन्दरसूरि ने वि.सं. १५१० / ईस्वी सन् १४५४ में हंसराजवत्सराज चौपाई " की रचना की । यह मलधारगच्छ से सम्बद्ध वि. सम्वत् की १६वीं शती का एक मात्र साहित्यिक साक्ष्य माना जा सकता है ।
जैसा कि अभिलेखीय साक्ष्यों के अन्तर्गत हम देख चुके हैं वि.सं. १४९७ से वि.सं. १५२९ तक के ४३ प्रतिमालेखों में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में गुणसुन्दरसूरि का नाम मिलता है । हंसराजवत्सराजचौपाई के रचनाकार सर्वसुन्दरसूरि ने भी अपने गुरू का यही नाम दिया है, अतः समसामयिकता के आधार पर दोनों साक्ष्यों में उल्लिखित गुणसुन्दरसूरि एक ही व्यक्ति माने जा सकते हैं ।
वि.सं. की १५वीं शती के उत्तरार्ध और १६वीं शती तक के मलधारगच्छ से सम्बद्ध साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर गुरू-शिष्य परम्परा की जो तालिका निर्मित होती है, वह इस प्रकार है :
मतिसागरसूरि (वि.सं. १४५८-१४७९ ) प्रतिमालेख
विद्यासागरसूरि (वि.सं. १४७६ - १४८८) प्रतिमालेख
सुन्दरसूरि (वि.सं. १४९७ - १५२९) प्रतिमालेख
सर्वसुन्दरसूरि (वि.सं. १५१० में हंसराजवत्सराजचौपाई अपरनाम कथा संग्रह के रचनाकार)
१७४
Jain Education International
गुणनिधानसूरि (वि.सं. १५२९-१५३६) प्रतिमालेख
गुणसागरसूरि (वि.सं. १५४३-१५४६) प्रतिमालेख
लक्ष्मीसागरसूरि (वि.सं. १५४९ - १५७२) प्रतिमालेख
श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org