Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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२. इन्द्रिय दमन करना- विकारशील या स्वेच्छाचारी व्यक्ति ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता । अत: इन्द्रिय विजेता बनना चाहिए।
३. मर्म वचन न बोलना-मधुर व शिष्ट भाषा जहां गुरूजनों का मन जीत लेती है, वहीं कटु व मर्म वचन उनका हृदय दग्ध कर डालते हैं। इसलिए शिष्य व विद्यार्थी कभी अप्रिय व मर्म घातक वचन न बोले।
४. शीलवान-यह गुण व्यक्ति के चरित्र का निर्माण करता है। और लोगों में उसकी विश्वसनीयता बढाता है।
५. शील की दृढता-शिथिलाचारी या खण्डिताचारी अथवा संकल्प के अस्थिर व्यक्ति पर कभी भी श्रुतदेवता (सरस्वती) प्रसन्न नहीं होते। अत: शैक्ष अपने चरित्र में दृढ निष्ठाशील रहे।
६. रस लोलुप न हो-भोजन में चटोरा भजन नहीं कर सकता । इसी प्रकार रस या स्वाद में आसक्त व्यक्ति शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकता। शिक्षार्थी को अपनी सभी इन्द्रियों पर पूर्ण संयम रखना जरूरी है।
७. क्रोध नहीं करना-क्षमा रखने वाला। ८. सत्यभाषी होना-असत्य बोलने वाला न हो।
ये आठ गुण, या योग्यता जिस व्यक्ति में होती है । वही जीवन में शिक्षा-ज्ञान प्राप्त कर सकता है, अपनी प्रतिभा का विकास कर सकता है ।।
इन्हीं गुणों का विकास व विस्तार करते हुए आचार्य जिनसेन ने विद्यार्थी की योग्यता की १५ कसौटी बताई है
१. जिज्ञासा वृत्ति २. श्रद्धाशीलता
१. (१) अह अट्ठहिं ठाणिहें सिक्खासीले त्ति वुच्चई । अहस्सिरे सया दन्ते न य मम्ममुदाहरे ।। (२) नासीले न विसीले न सिया अइलोलुए। अकोहणे सच्चरए सिक्खासीले त्ति वुच्चई ।।
-उत्तराध्ययन- ११/४-५
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श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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