Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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धनपाल का भी उच्च स्थान था। महाकवि धनपाल जैन थे और उन्होंने 'तिलक मंजरी' नाम का गद्य काव्य लिखा है, जिसमें विनिता नगरी और भगवान आदिनाथ की महिमा वर्णित है। यह संस्कृत साहित्य की एक महान और अद्वितीय कृति है।
धनपाल कवि की चमत्कारिक काव्यप्रतिभा एवं निर्भीकता से राजा भोजन अत्यन्त प्रभावित थे । अन्य राजाओं की भांति वह भी शिकार प्रेमी थे । एक बार कवि धनपाल ने राजा भोज के बाण से घायल हिरणी की व्यथा का मार्मिक वर्णन सुनाया। जिसे सुनकर राजा का हृदय करुणार्द्र हो उठा और मूक प्राणियों के लिए उनके मन में करुणा फूट पड़ी। तब से राजा भोज ने सदा के लिए शिकार खेलना छोड़ दिया।
__ महाराजा भोज के उत्तराधिकारी लघुभोज हुए। उन्होंने 'जीवविचार' के रचयिता श्रीशांतिसूरि को 'वादिवेताल' की पदवी से विभूषित किया था। कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य ने जैसे सोलंकी कुमारपाल को परमाहँत बनाया था वैसे ही वादिवेताल श्रीशांतिसूरि ने परमार लघुभोज को जैन धर्म का अनन्य रशंसक बनाया था। परमार क्षत्रिय वंश की व्यापकता
एक दोहा प्रचलित था :प्रथम साख परमार, सेस सीसौदा सिंगाला। रणथंभा राठौड, वंस चंवाल बचाला ॥
कवि ने दोहे की प्रथम पंक्ति में परमार क्षत्रियों की साख, प्रभुत्व, अधिकार और व्यापकता को स्वीकार किया है। एक समय था जब सम्पूर्ण भारत में परमार क्षत्रिय वंश की बोलबाला थी। परमार लघुभोज की मृत्यु और वादिवेताल श्रीशांतिसूरि के स्वर्गवास के बाद परमारों का जैन धर्म से परिचय सिमट गया। परमार क्षत्रियों में परस्पर जो एकता थी वह भी टूट गई । इसलिए वंश विभक्त हो गया और बिना माली की जो दशा चमन की होती है वही दशा परमार क्षत्रियों की हुई।
जो परमार क्षत्रिय मध्य प्रदेश की सीमान्त में बसे हुए थे उनका उज्जयिनी से सम्पर्क टूट गया और वे अपने में ही सिकुड़ते चले गए । यद्यपि जैन धर्म का सम्पर्क उनसे टूट गया था फिर भी उसके जो मौलिक संस्कार थे वे उननमें जीवित रहे। उन्होंने अपने छोटे-छोटे राज्य बनाएं। देवगढ़ उनकी मुख्य राजधानी थी। शेष परमार क्षत्रिय दो सौ कि. मी. के अन्दर में सात सौ गांवों में विभक्त हो कर बसे हुए थे। स्वतंत्रता के बाद वे गांव दो जिलों में विभाजित हो गए और
एक लाख परमारों का उद्धार : बीसवीं सदी का एक ऐतिहासिक कार्य
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