Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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किया। इस तरह जैन धर्म ने क्षत्रियवंश को श्रेष्ठ स्वीकार किया है। परमार क्षत्रिय वंश की प्राचीनता
। भगवान मुनिसुव्रत स्वामी के बाद इक्ष्वाकु वंश क्षत्रियों की अनेक शाखा-प्रशाखाओं में विभाजित हो गया। भगवान नेमिनाथ यदुवंश में उत्पन्न हुए । भगवान महावीर स्वामी ज्ञातुंश में उत्पन्न हुए। भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण के बाद ज्ञातृवंश भी अनेक शाखा-प्रशाखाओं में विभाजित हो गया। जिनमें परमार, सोलंकी, सिसोदिया, राठौड़ आदि प्रमुख हैं। हिन्दू साहित्यकार और इतिहासज्ञ जयशंकर प्रसाद मानते हैं कि परमार, परिहार, चालुक्य या सोलंकी और चौहान वंश की उत्पत्ति आबू में अग्निकुल से हुई थी। आबू और उसके आसपास परमार क्षत्रियों का राज्य था। सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक नगरी चन्द्रावती उनकी प्रमुख राजधानी थी। उसके बाद किन्हीं अपरिहार्य कारणों से परमार और सोलंकी आदि वंशों को आबू और चन्द्रावती नगरी छोड़कर गुजरात और मध्यप्रदेश में आना पड़ा। सोलंकी वंश गुजरात में पाटण के आसपास बस गया और परमार वंश मध्यप्रदेश के उज्जयिनी के आसपास बस गया। परमार क्षत्रियों की वीरता
क्षत्रियों की अनुपम वीरता के कारण क्षत्रियत्व वीरत्व का पर्यायवाची बन गया और जो वीर होता है वही स्वामी बनता है। कहा भी जाता है 'वीरभोग्या वसंधरा' भारत वर्ष में सभी लोगों के कार्य विभाजित थे । क्षत्रियों का कार्य देश की रक्षा और उसकी समृद्धि बढ़ाना था और यही उनका कर्तव्य भी। परमार क्षत्रियों ने भी अपने इस कर्तव्य का भलीभाँति निर्वहण किया। आबू से उज्जयिनी में बसने के बाद परमारों ने अपने भुजबल से सम्पूर्ण मध्यप्रदेश को अधीन बना लिया। उस समय मध्यप्रदेश की सीमाएं बड़ौदे से लेकर चम्बल घाटी तक थीं। परमारों ने अपनी राजधानी उज्जयिनी को बनाया। परमार राजा अद्वितीय वीर, न्यायप्रिय, साहित्य एवं कला के रसिक थे । परमार सम्राटों में विक्रमादित्य न्याय के लिए, मुंज वीरता के लिए और महाराजा भोज विद्या के लिए प्रसिद्ध थे । महाराजा भोजन ने 'सरस्वती कंठाभरण' नाम का ग्रंथ भी लिखा था । इसी से प्रेरणा लेकर हेमचन्द्राचार्य ने 'सिद्ध हेम व्याकरण' की रचना की थी। सोलंकी वंश में सिद्धराज जयसिंह और परमार्हत् महाराजा कुमारपाल हुए उसी प्रकार परमार वंश में विक्रमादित्य, मुंज और भोज हुए। परमार क्षत्रिय और जैन धर्म
महाराजा भोज के दरबार में महाकवि कालिदास की तरह एक प्रतिभाशाली कवि
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श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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