Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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अष्टस. विवरण पृ.७३/१ तत्वार्थ श्लोक वार्तिक १.१३.९४-११९ । परीक्षामुख ३.११-१३ । प्रमेय कमलमार्तंड पृष्ठ- ३.३५३ प्रमाणनय तत्त्वालोक ३.७.८ रत्नाकरावतारिका टीका के साथ ।
२-संबोधि वर्ष अंक १ तथा इस चर्चा के विस्तार से निरुपण तत्वार्थ श्लोक वार्तिक में १.१३.८४-११९ में देखें।
३-यह ग्रन्थ स्वतंत्र रूप से अभी प्रकाशित नहीं है । किन्तु वह करीब पूरा का पूरा जैन ग्रन्थों में उद्धृत करके उसका निराकरण किया गया है- देखें- प्रमेय कमल मार्तण्ड पृ. ५०४-५२० ।
स्याद्वाद रत्नाकर ८१४-८१७ । ४-देखें टिप्पणी नं.३। ५-न्यायावतार का. २२।। तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक १.१३.१२१, १.१३.१७८, १.१३.१२३-१८५, १.१३.१८६- १९३ । रत्नाकरावारिका ३.११-१३ । ६-प्रमेयकमलमार्तण्ड ३.१६.१८ । रत्नाकरावतारिका ३.७१-७६ । प्रमाणमीमांसा १.२.१० । ७-न्यायावतार २० । तत्त्वार्थ श्लोक वार्तिक १.१३. १६१-१७४ । प्रमेय कमलमार्तण्ड ३.३७-४३ । रत्नाकरावतारिका ३.३३-३९ ।
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श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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