Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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परम्परा के अनेक भाण्डार इतने महत्त्व के हैं जितने महत्त्व के अन्य स्थानों के नहीं।
माध्यम की दृष्टि से मेरे देखने में आए ग्रन्थों के तीन प्रकार हैं—ताड़पत्र, कागज और कपड़ा। ताड़पत्र के ग्रन्थ विक्रम की नवीं शती से लेकर सोलहवीं शती तक के मिलते हैं। कागज के ग्रन्थ जैन भाण्डारों में विक्रम की तेरहवीं शती के प्रारम्भ से अभी तक के मौजूद हैं। यद्यपि मध्य एशिया के यारकन्द शहर से दक्षिण की ओर ६० मील पर कुगियर स्थान से प्राप्त कागज के चार ग्रन्थ लगभग ई.स. की पांचवी शती के माने जाते हैं, परन्तु इतना पुराना कोई ताड़पत्रीय या कागजी ग्रन्थ अभी तक जैन भाण्डारों में से नहीं मिला। परन्तु इसका अर्थ इतना ही है कि पूर्वकाल में लिखे गए ग्रन्थ जैसे जैसे बूढ़े हुए–नाशाभिमुख हुए—वैसे वैसे उनके उपर से नई नई नकलें होती गई और नए रचे जाने वाले ग्रन्थ भी लिखे जाने लगे। इस तरह हमारे सामने जो ग्रन्थ-सामग्री मौजूद है उसमें मेरी दृष्टि से, विक्रम की पूर्व शताब्दियों से लेकर नवीं शताब्दी तक के ग्रन्थों का अवतरण है और नवीं शताब्दी के बाद नए रचे गए ग्रन्थों का भी समावेश है।
मेरे देखे हुए ग्रन्थों में ताड़पत्रीय ग्रन्थों की संख्या लगभग ३,००० (तीन हजार) जितनी और कागज के ग्रन्थों की संख्या तो दो लाख से कहीं अधिक है। यह कहने की जरूरत नहीं कि इसमें सब जैन फिरकों के सब भाण्डारों के ग्रन्थों की संख्या अभिप्रेत नहीं है, वह संख्या तो दस-पन्द्रह लाख से भी कहीं बढ़ जायेगी।
भिन्न-भिन्न अपेक्षा से भाण्डारों का वर्गीकरण नीचे लिखे अनुसार किया जा सकता है। इतना ध्यान में रहे कि यह वर्गीकरण स्थूल है।
प्राचीनता की दृष्टि से तथा चित्रपट्टिका एवं अन्य चित्रसमृद्धि की दृष्टि से और संशोधित तथा शुद्ध किए हुए आगमिक साहित्य की एवं तार्किक, दार्शनिक साहित्य की दृष्टि से-जिसमें जैन परम्परा के अतिरिक्त वैदिक और बौद्ध परम्पराओं का भी समावेश होता है—पाटन, खम्भात
और जैसलमेर के ताड़पत्रीय संग्रह प्रथम आते हैं। इनमें से जैसलमेर का खरतर-आचार्य श्रीजिनभद्रसूरि संस्थापित ताड़पत्रीय भाण्डार प्रथम ध्यान खींचता है। नवीं शताब्दी वाला ताड़पत्रीय ग्रन्थ विशेषावश्यक महाभाष्य जो लिपि, भाषा और विषय की दृष्टि से महत्त्व रखता है वह पहले पहल इसी संग्रह से मिला है। इस संग्रह में जितनी और जैसी प्राचीन चित्रपट्टिकाएं तथा अन्य पुरानी चित्र-समृद्धि है उतनी पुरानी और वैसी किसी एक भाण्डार में लभ्य नहीं। इसी ताड़पत्रीय संग्रह में जो आगमिक ग्रन्थ हैं वे बहुधा संशोधित और शुद्ध किए हुए हैं। वैदिक परम्परा के विशेष शुद्ध और महत्त्व के कुछ ग्रन्थ ऐसे हैं जो इस संग्रह में हैं। इसमें सांख्यकारिका परका गौडपाद-भाष्य तथा इतर वृत्तियां है। योगसूत्र के ऊपर की व्यासभाष्य सहित तत्त्ववैशारदी ज्ञान भंडारों पर एक दृष्टिपात
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