Book Title: Vijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Author(s): Navinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
Publisher: Vijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
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अन्त के समय के उल्लेख उपलब्ध होते हैं। वे इस प्रकार हैं:
॥सं. १४८९ वर्ष ज्ये. वदि ।पत्र ३५४ मलबारनां ॥वर्य पृथुल संचय: ॥श्री ॥
पाटन के भाण्डारों में से भी इसी से मिलता-जुलता उल्लेख मिला था। उसमें तो एक पन्ने की कीमत भी दी गई थी। यद्यपि वह पन्ना आज अस्तव्यस्त हो गया है फिर भी उसमें आए हुए उल्लेख के स्मरण के आधार पर एक पन्ना छह आने का आया था। ग्रन्थ लिखने के लिये जिस तरह ताड़पत्र मलबार जैसे सुदूरवर्ती देश से मंगाए जाते थे, उसी तरह अच्छी जात के कागज काश्मीर और दक्षिण जैसे दूर के देशों से मंगाए जाते थे । गुजरात में अहमदाबाद, खम्भात, सूरत आदि अनेक स्थानों में अच्छे और मजबूत कागज बनते थे । इधर के व्यापारी अभी तक अपनी बहियों के लिये इन्हीं स्थानों के कागज का उपयोग करते रहे हैं। शास्त्र लिखने के लिये सूरत से कागज मंगाने का एक उल्लेख संस्कृत पद्य में मिलता है । वह पद्य इस प्रकार है :
“सूरात्पुरत: कोरकपत्राण्यादाय चेतसो भक्त्या।
लिखिता प्रति: प्रशस्ता प्रयलत: कनकसोमेन ॥” इसका सारांश यह है कि सूरत शहर से कोरे कागज लाकरके हार्दिक भक्ति से कनकसोम नामक मुनि ने प्रयत्नपूर्वक यह प्रति लिखी है।
ताड़पत्र में मोटी-पतली, कोमल-रूक्ष, लम्बी-छोटी, चौड़ी-संकरी आदि अनेक प्रकार की जातें थी। इसी प्रकार कागजों में भी मोटी पतली, सफेद सांवलापन ली हुई, कोमल-रूक्ष, चिकनी-सादी आदि अनेक जातें थी। इनमें से शास्त्रलेखन के लिये, जहां तक हो सकता था वहां तक, अच्छे से अच्छे ताड़पत्र और कागज की पसंदगी की जाती थी। कागज की अनेक जातों में से कुछ ऐसे भी कागज आते थे जो आजकल के कार्ड के जैसे मोटे होने के साथ ही साथ मजबूत भी होते थे। कुछ ऐसे कागज थे जो आज के पतले बटर पेपर की अपेक्षा भी कहीं अधिक महीन होते थे। इन कागजों की एक यह विशेषता थी कि उस पर लिखा हुआ दूसरी ओर फैलता नहीं था। ऊपर जिसका उल्लेख किया गया है वैसे बारीक और मोटे कागजों के ऊपर लिखी हुई ढेर की ढेर पुस्तकें इस समय भी हमारे ज्ञान भाण्डारों में विद्यमान है। इसके अतिरिक्त, हमारे इन ज्ञानभाण्डारों को यदि पृथक्करण किया जाय तो, प्राचीन समय में हमारे देश में बनने वाले कागजों की विविध जातें हमारे देखने में आएंगी। ऊपर कही हुई कागज की जातों में से कुछ ऐसी भी जाते है जो चार सौ, पांच सौ वर्ष बीतने पर भी धुंधली नहीं पड़ी है। यदि इन ग्रन्थों को हम देखें तो हमें ऐसा ही मालूम होगा कि मानो ये नई पोथियां हैं। स्याही-ताड़पत्र और कागज के ऊपर लिखने की स्याहियां भी खास विशेष प्रकार की
श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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