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श्रादविधि/२३ • उपाश्रय में श्रावकों की माराधना के लिए मुखवस्त्रिका (मुहपत्ती), माला (नवकारवाली), आसन, चरवला आदि रखने चाहिए।
• वर्षाकाल में (उपाश्रय में) श्रावक आदि के बैठने के लिए कुछ पाट-पाटले कराने चाहिए।
. . प्रतिवर्ष उत्तम वस्त्र आदि से और न हो तो कम-से-कम सूत की वस्तु से भी संघपूजा और अपनी शक्ति अनुसार सार्मिक-वात्सल्य करना चाहिए ।
• प्रतिदिन कुछ 'लोगस्स' आदि का कायोत्सर्ग एवं तीन सौ गाथा आदि का स्वाध्याय करना चाहिए। • • प्रतिदिन दिन में कम से कम नवकारसी और रात्रि में चौविहार आदि का पच्चक्खाण करना चाहिए।
• प्रतिदिन उभय-काल (सुबह-शाम) प्रतिक्रमण आदि का नियम करना चाहिए। ___इसके बाद श्रावक के बारह व्रतों का स्वीकार करना चाहिए। सातवें भोगोपभोग व्रत में सचित्त, अचित्त और मिश्र का व्यवस्थित बोध होना चाहिए । सचित्त-अचित्त और मिश्र वस्तुओं का स्वरूप .
- प्रायः सभी प्रकार के धान्य, धनिया, जीरा, अजमा, सौंफ, सुआ, राई, खसखस आदि सभी. जाति के दाने, सभी जाति के फल, पत्ते, नमक, खारी, पापड़खारा, लालसिंधव, संचल, प्राकृतिक र, मिट्टी, खडी, हिरमजी आदि, आर्द्र दातन प्रादि व्यवहार से सचित्त समझने चाहिए।
पानी में भिगोये गये चने, गेहूँ आदि अनाज तथा चना, मूग आदि की दालें पानी में भिगोयी हों तो भी उन्हें मिश्र समझना चाहिए। क्योंकि कई बार पानी में भिगोयी गयी दालों में अंकुर फूट निकलते हैं।
पहले से नमक व बाष्प दिये बिना तथा रेती बिना सेके गये चने तथा गेहूँ, ज्वार आदि की धाणी, धान्य, क्षार आदि दिये बिना कटे हुए तिल, होला (भुने हुए हरे चने), हरी बालों को अाँच पर सेक कर निकाले हुए दाने, भुने हुए हरे धान्य, सेकी हुई फली, सेम की फली तथा काली मिर्च, राई के बघार आदि से हो संस्कार किये हुए चीभड़े तथा जिनमें सचित्त बीज हों ऐसे पके हुए फलों को मिश्र समझना चाहिए।
जिस दिन तिलकुट्टी (अग्नि पर सेके बिना तिल को कूटकर गुड़ के मिश्रण से जो बनायी जाती है) बनायी हो उस दिन मिश्र समझनी चाहिए परन्तु रोटी, पूड़ी आदि में डाली हो तो उसे दो घड़ी बाद प्रासुक समझनी चाहिए। दक्षिण और मालवा आदि देश में अत्यधिक गुड़ डालकर बनायी गयी तिलकुट्टी को उसी दिन प्रासुक मानने का व्यवहार है।
__ वृक्ष से तत्काल अलग किये गये गोंद, लाख, छाल, आदि तथा नारियल, नींबू, नीम, प्राम, गन्ना, नारंगी, दाडिम आदि का तत्काल निकाला हुआ रस, तिल का तत्काल निकाला हुआ तेल, तत्काल फोड़ा हुआ नारियल, सिंघोड़ा, सुपारी आदि फल, तत्काल बीज से अलग किये गये पके फल, अत्यन्त