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श्रावक जीवन-दर्शन / १४३
सेठ के मरने के बाद वह वणिक् श्रेष्ठी-पुत्रों का सान्निध्य चाहता था, परन्तु गरीब होने के कारण उससे कोई बोलता भी नहीं था । एक बार उसने दो-तीन की साक्षी में सेठ की पुरानी खाताबही में लिख दिया कि - "मुझे सेठ को दो हजार टंक देने के हैं ।"
एक बार सेठ के पुत्रों ने वह खाताबही देखी और उस वणिक् से दो हजार टंक मांगने लगे । वणिक् ने कहा - "व्यापार के लिए मुझे कुछ धन दो, जिससे मैं थोड़े ही दिनों में आपका धन लौटा दूंगा ।"
सेठ के पुत्रों ने उसे कुछ धन दिया। उस धन से उसने बहुत सा धन कमाया। सेठ के पुत्रों ने जब उससे धन मांगा तो उसने साक्षीपूर्वक सब बातें सही-सही बतला दीं । इस प्रकार वह श्रेष्ठी-पुत्रों के आधार से समृद्ध हुआ ।
* अहंकार नहीं करना *
निर्दयता, अहंकार, तृष्णा, कठोर भाषण और नीच व्यक्तियों से प्रेम-ये पाँच लक्ष्मी के साथ चलने वाले (दुर्गुण) हैं। लोक में यह कहावत दुर्जनों की अपेक्षा कही हुई होने से अधिक लाभ होने पर भी कभी गर्व नहीं करना चाहिए। कहा है
" जिनका चित्त आपत्ति में दीन नहीं बनता है, सम्पत्ति में गर्व नहीं करता है, अन्य की प्रापत्ति में व्यथित बन जाता है और श्रात्म-संकट में भी प्रसन्न रहता है, उन महान् व्यक्तियों को नमस्कार हो ।”
" समर्थ होने पर भी जो दूसरे के उपद्रव को सहन करता है, धनवान होने पर भी गर्व नहीं करता है और जो विद्वान् होने पर भी विनीत होता है, सचमुच उन तीनों से यह पृथ्वी अलंकृत है ।"
सज्जन व्यक्ति को किसी के साथ थोड़ा भी झगड़ा नहीं करना चाहिए और विशेष करके बड़े व्यक्तियों के साथ तो बिल्कुल नहीं। कहा है
"खांसी के रोगी को चोरी का कार्य छोड़ना चाहिए । निद्रालु को जारकर्म, रोगी को रसना की लोलुपता और धनवान को दूसरे के साथ झगड़े का त्याग करना चाहिए ।"
"धनवान, राजा, अधिक पक्षवाला, बलवान, क्रोधी, गुरु, नीच तथा तपस्वी के साथ वाद नहीं करना चाहिए ।" "कदाचित् बड़ों के साथ अर्थ आदि का व्यवहार हो जाय तो नम्रता से ही अपने कार्य को सिद्ध कर लेना चाहिए, क्योंकि बलप्रयोग और कलह आदि करने में फायदा नहीं है ।"
पंचाख्यान में भी कहा है- "उत्तम पुरुषों को विनय से, पराक्रमी पुरुषों को भेद से, नीच पुरुषों को अल्प दान से और आत्मतुल्य को पराक्रम से वश में करना चाहिए ।"
धन के अर्थी और धनवान को विशेष करके क्षमा रखनी चाहिए क्योंकि क्षमा ही लक्ष्मी की वृद्धि और उसके रक्षण का उपाय है। कहा है- "ब्राह्मणों का बल होम-मंत्र, राजा का बल नीतिशास्त्र, अनाथ का बल राजा और वणिक्पुत्र का बल क्षमा है ।" "अर्थ का मूल प्रियवाणी और क्षमा है। काम का मूल धन, शरीर और वय है । धर्म का मूल दान, दया और दमन है और मोक्ष का मूल सर्वसंग का त्याग है ।" वचन-क्लेश (दंत - कलह ) का सर्वथा त्याग करना चाहिए ।