Book Title: Shravak Jivan Darshan
Author(s): Ratnasensuri
Publisher: Mehta Rikhabdas Amichandji

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Page 339
________________ श्राद्धविधि / ३२२ उन्होंने कहा - "स्त्रियों सहित वे विद्याएँ भले चली गईं। हे प्रभो ! आपका शरीर तो कुशल है न ?" इस प्रकार कपटबुद्धि से राजकुल को विश्वास में लेकर चन्द्रवती के साथ प्रीति करता हुआ वह राज्य करने लगा । शुक्रराज तीर्थयात्रा कर अपने सास-श्वसुर के नगर में कुछ दिनों तक रहकर अपने नगर के उद्यान में आया । अपने आचरण से शंकित बना गवाक्ष में बैठा चन्द्रशेखर शुक को आते देखकर व्याकुल हो गया और चिल्लाकर मंत्री को बोला - " जिसने मेरी विद्याओं व पत्नियों का अपहरण किया था, वह अब मेरा रूप करके उपद्रव करने के लिए आ रहा है । श्रतः तुम जाकर उसे मधुरवचनों से वहीं से लौटा दो। बलवान के साथ शान्ति से बात करना ही बड़ा बल है ।" "दक्ष मित्रों की सहायता से असाध्य कार्य भी सुसाध्य हो जाता है" - इस प्रकार विचार कर दक्ष मंत्रियों के साथ चन्द्रशेखर शुकराज के सन्मुख चल पड़ा । “ये मेरे स्वागत हेतु सन्मुख श्रा रहे हैं", इस प्रकार जानकर शुकराज अपने विमान से नीचे उतरकर आम्रवृक्ष के नीचे आ गया । मंत्री ने जाकर नमस्कार करके कहा - "हे विद्वान् विद्याधरेन्द्र ! वादी के वचन की भाँति आपकी असीम शक्ति है । आपने हमारे स्वामी की विद्याओं तथा पत्नियों का भी अपहरण कर 'लिया, अत: अब आप कृपा करके शीघ्र अपने स्थान में चले जाओ ।" मंत्री के ये वचन सुनकर, "अरे ! यह भ्रान्त है, शून्य चित्तवाला है, वात के रोगवाला है, अथवा पिशाचग्रस्त है ?" इत्यादि अनेक संकल्पों वाला शुकराज आश्चर्यपूर्वक बोला - "हे मंत्री ! तुमने यह क्या कहा ? मैं स्वयं शुकराज हूँ ।" मंत्री ने कहा - " हे विद्याधर ! क्या तुम मुझे भी ठगना चाहते हो ? मृगध्वज के महावंश रूपी आम्रवृक्ष में शुक समान हमारे राजा शुकराजा तो हमारे भवन में हैं, आप तो उसके रूप को धारण करने वाले विद्याधर हो । बहुत ज्यादा कहने से क्या फायदा ? बिल्ली से डरने वाले चूहे की भाँति हमारा स्वामी आपके दर्शन मात्र से ही घबराता है अतः आप शीघ्र यहाँ से चले जाओ ।" खिन्न बने शुकराज ने सोचा - " निश्चय ही किसी मायावी ने छल से मेरा रूप करके मेरा राज्य ले लिया है ।" कहा है " राज्य, भोजन, शय्या, श्रेष्ठ घर, रूपवती स्त्री तथा धन को सूना छोड़ने पर दूसरे लोग उस पर अधिकार कर लेते हैं ।" “इसे मारकर राज्य ग्रहण करने से क्या मतलब ? इससे अत्यन्त निन्दा भी होगी कि किसी धूर्त महापाप ने मृगध्वज राजा के पुत्र शुक को मारडाला और राज्य ग्रहरण कर लिया । उसके बाद उसने तथा उसकी दोनों स्त्रियों ने पहिचान किसी ने उसकी बात नहीं मानी । धिक्कार हो इस कपट के आडम्बर को । हेतु बहुत से संकेत बताये परन्तु

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