Book Title: Shravak Jivan Darshan
Author(s): Ratnasensuri
Publisher: Mehta Rikhabdas Amichandji

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Page 348
________________ श्रावक जीवन-दर्शन / ३३१ कौतूहल को देखने के लिए उत्सुक कुमार के मन की मानों प्रेरणा ही न हो इस प्रकार पृथ्वी पर निरन्तर दौड़ने पर भी उस घोड़े ने थकावट की अनुभूति नहीं की। इस प्रकार दौड़ता हुआ वह भ्रमण करती हुई शबरसेना से अत्यन्त भयंकर शबरसेन नाम के भयंकर जंगल में आ पहुँचा । जंगली जानवरों की अत्यन्त भय व उन्माद पैदा करने वाली गर्जनाओं को सुनकर मानों ऐसा लगता था कि यह जंगल 'सभी जंगलों में मैं अग्रणी हूँ' " - इस प्रकार गर्जना करता है । मानों कुमार के कौतुक के लिए ही जहाँ पर हाथी, सिंह, व्याघ्र, वराह तथा महिष आदि परस्पर लड़ रहे थे । सियारों की ध्वनि से मानों वह वन कुमार को आह्वान कर रहा था कि यदि तुम अपूर्वं वस्तु • के लाभ के इच्छुक व कौतुक देखने के अभिलाषी हो तो शीघ्र यहाँ श्रश्र । उस जंगल के चारों प्रोर रहे वृक्ष मानों अश्व के वेग से चमत्कृत नहीं हुए हों, इस प्रकार वे पती हुई डालियों के बहाने से मस्तक झुका रहे थे । जहाँ पर भिल्ल स्त्रियाँ किन्नरियों की भाँति मधुर स्वर से मानों कुमार के रंजन के लिए उद्भट गीत गा रही थीं । उसवी में आगे बढ़ने पर उसने झूले पर प्रारूढ़ भूमिगत पातालकुमार की भाँति (अत्यन्त तेजस्वी-रूपवान ) तापसकुमार को देखा । कुमार ने स्निग्ध दृष्टि से स्निग्ध दृष्टि वाले ( उस तापसकुमार को ) स्नेही बन्धु की भाँति देखा, उसे देखकर मानों ऐसा प्रतीत होता था कि अब दुनिया में देखने योग्य कोई वस्तु नहीं है । वर को देखकर कन्या के मन में जैसे लज्जा, उत्सुकता व आनन्द की अनुभूति होती है, उसी प्रकार कामदेव के समान उस रूपवान कुमार को देखकर तापसकुमार के मन में भी लज्जा, उत्सुकता व आनन्द की अनुभूति होने लगी । उन मनोविकारों से वह शून्यमनस्क हो गया था फिर भी धृष्टता का आलम्बन लेकर वह झूले पर से नीचे उतरा और कुमार को बोला -- "हे विश्ववल्लभ ! सोभाग्यनिधि ! हम पर कृपा भरी नजर रखो । स्थिरता धारण करो । तथा कहो कि कौनसा देश आपके निवास करने से प्रशंसनीय बना है और कौन सा नगर विश्व में अनुत्तर बना है ? उत्सवों से युक्त ऐसा कौनसा कुल है, जिसमें श्रापका अवतरण हुआ है ? आपके संग से कौनसी जाति जुही के पुष्प की भाँति सुगन्धित हुई है ? तीन लोक को प्रानन्द देने वाले तुम्हारे पिता कौन हैं, जिनकी हम स्तुति करें तथा पूज्यों में श्रेष्ठ तुम्हारी माता कौन सी है ? लोगों को आनन्द देने वाले सज्जनों की भाँति आपके स्वजन कौन हैं जिनसे समग्र सौभाग्यशाली लोगों में अग्रणी ऐसे आप स्वजनपना मानते हो । हे महात्मन् ! आपका नाम कौनसा है, जिससे आप पुकारे जाते हैं ? इष्टजन के संयोग में कौन सा विघ्न है, जिससे कि आप मित्ररहित हो। दूसरों की अवगरणना कराने वाली इस जल्दबाजी का क्या कारण है ? वह कौन सा कारण है जिससे तुम मेरे साथ प्रीति करना चाहते हो ?" तापसकुमार की इन सुन्दर बातों को सुनकर केवल कुमार ही नहीं बल्कि घोड़ा भी कुछ जानने के लिए उत्सुक हो गया । कुमार के मन के साथ ही वह घोड़ा भी वहाँ रुक गया । घुड़सवार की इच्छानुसार ही श्रेष्ठ घोड़ों की चेष्टाएँ होती हैं । तापसकुमार के रूप, वचन व लालित्य से मोहित बने हुए उस कुमार ने जब कुछ भी जवाब

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