Book Title: Shravak Jivan Darshan
Author(s): Ratnasensuri
Publisher: Mehta Rikhabdas Amichandji

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Page 353
________________ श्राद्धविधि/३३६ उसके बाद कुमार ने पोपट को कहा-"क्या मन को प्रानन्द देने वाले तापसकुमार का पता आज तक भी नहीं लग रहा है ?" पोपट ने कहा-“हे मित्र ! खेद मत करो। खुश हो जाओ ! नजदीक में ही हुए शकुनों से लगता है कि उसका प्राज ही मिलन हो जायेगा।" इसी बीच शरीर पर के समस्त दिव्य अलंकारों से सभी दिशाओं को मानों तेजोमयी बना रही हो, ऐसी सुन्दर मुख वाली एक कन्या वहाँ पाई। जिसके मस्तक पर शिखामणि के जैसी शिखा थी, जो द्रष्टा के हर्ष का पोषण करने वाला था, सुन्दर पूंछ से सुशोभित था, मधुर स्वरवाला था तथा अपने वेग से इन्द्र के घोड़े को भी हराने वाला था, ऐसे श्रेष्ठ मयूर पर वह आरूढ़ थी। देह की दिव्य कान्ति को धारण करने वाली. धर्म की प्राराधना करने में प्राज्ञ वह स्त्री देवी की भाँति लगती थी। पद्मिनी की भांति उसके समस्त अंगों से सुगन्ध की वर्षा होती थी। जिसका तारुण्य अत्यन्त ही सुन्दर था और जो लावण्य रूपी अमृत की नहर थी। उसके बाद उसने भक्तिपूर्वक आदिनाथ प्रभु को नमस्कार किया और अपने मयूर के साथ ही उसने पृथ्वी पर माई हुई रम्भा की भाँति नृत्य प्रारम्भ किया। नर्तकी की भांति अपने प्रशस्त हाथों तथा अन्य अंगों के हावभाव पूर्वक अत्यन्त मनोहर विविध भावों को दिखलाकर उसने नृत्य किया ।। इस नृत्य का देख कुमार व पोपट इतने अधिक चमत्कृत हो गये कि वे सब कुछ भूलकर मानों उसी में तन्मय बन गये। सुन्दर रूप वाले उस कुमार को देखकर वह मृगलोचना कन्या भी उल्लास पूर्वक विलास करती हुई पाश्चर्यचकित हो गई। कुमार ने कहा-"हे सुन्दरि! यदि तुझे कोई कष्ट न हो तो मैं एक बात पूछना चाहता है।" उसने कहा,-"हाँ ! पूछो।" तब कुमार के पूछने पर विशिष्ट वाणी वाली उस कन्या ने हृदयवेधक अपना सारा वृत्तान्त इस प्रकार सुनाया। स्वर्ण की शोभा से नहीं जीती जाय ऐसी कनकपुरी नगरी में अपने कुल में स्वर्ण की पताका समान कनकध्वज नाम का राजा था। जिसने अपनी प्रसन्नदृष्टि से तण को भी अमृत बना दिया था, अन्यथा युद्ध में तृण का आस्वाद करके (तृण को मुंह में लेकर) उसके दुश्मन कैसे जीवित रहते । उसके, प्रशस्त गुणों से विभूषित इन्द्राणी के समान अन्तःपुर में कुसुमसुन्दरी नाम की. प्रधान रानी थी। एक बार वह सुखपूर्वक सो रही थी, तब उसने हर्ष को करने वाला एक स्वप्न देखा । रानी को रति व प्रीति का करने वाला रति व प्रीति का युगल, कामदेव की गोद में से उठकर रानी की गोद में माया, इस प्रकार का स्वप्न देखकर कमल के समान लोचन वाली वह तुरन्त जाग गयी। जल के वेग से नदी की भांति उसका मन आनन्द के वेग से भर पाया, जिसका वर्णन वाणी से अगोचर था। स्वप्न को देखने के बाद वह राजा के पास गयी और उसने जैसा स्वप्न देखा था, वह सब

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