Book Title: Shravak Jivan Darshan
Author(s): Ratnasensuri
Publisher: Mehta Rikhabdas Amichandji

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Page 343
________________ श्राद्धविधि/ ३२६ का सार्थक पुत्र हुआ । पूर्वकाल में हुए कृष्णपुत्र शांब - प्रद्युम्न की भाँति उन्होंने अपने गुणों से माता-पिता के गुणों को सत्य कर दिखलाया । क्रमशः शुकराज ने बड़े पुत्र को राज्य प्रदान किया और छोटे पुत्र को युवराज का पद प्रदान किया और स्वयं ने बड़े उत्सव के साथ दीक्षा ले ली। उसके बाद शत्र 'जय के प्रर्थी उसने शत्र जय की ओर प्रयाण किया । पर्वत पर चढ़ते हुए शुक्ल ध्यान पर श्रारूढ़ होने से उन्हें केवल - ज्ञान उत्पन्न हो गया । महात्मानों की लब्धि अपूर्व ही है। अनेक मनुष्यों के मोहान्धकार को उन्होंने दूर गये । उसके बाद दीर्घकाल तक पृथ्वी पर विचरण कर किया और अन्त में अपनी दोनो स्त्रियों के साथ मोक्ष हे भव्यो ! शुकराज राजा को प्रथम भद्रकता आदि गुणों से समकित की प्राप्ति हुई और उसके बाद उसका निर्वाह किया अत: अंत में उसे निर्वारण पद की प्राप्ति हुई । शुकराज के इस पूर्व फल को सुनकर प्राप भी उन गुणों का उपार्जन करने में उद्यम करो ।

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