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श्रावक जीवन-दर्शन/३२५
गया। उसी समय शुकराज भी वहाँ आ गया। शुकरूपवाले चन्द्रशेखर को नहीं देखने से एवं शुकराज को देखने से मंत्री आदि सभी ने शुकराज का बहुमान किया। लोगों को इतना ही पता चला कि कोई दुष्ट अन्दर आ गया था, अब वह बाहर निकल गया। बस, इससे अधिक लोगों को कुछ भी पता नहीं चला।
जिसने स्पष्ट फल देखा है, ऐसा शुकराज इन्द्र की भाँति दिव्य और नव्य, नाना प्रकार के विमान आदि पाडम्बर एवं समस्त मंत्री-सामन्त-विद्याधर आदि परिवार के साथ अद्वितीय महोत्सवपूर्वक विमलाचल पर्वत की ओर चल पड़ा।
किसी को मेरे दुश्चरित्र का पता नहीं है, इस प्रकार मानता हुआ शीलवान् पुरुष की भाँति लेश भी शंका किये बिना चन्द्रशेखर भी साथ में चलने के लिए उत्सुक हुआ।
शुकराज ने वहाँ जाकर प्रभु की पूजा व स्तुति की। महोत्सव करके सर्व लोगों के समक्ष वह बोला--"मंत्र की साधना से मुझे शत्रु पर जय मिली है अतः बुद्धिमान् पुरुष इस तीर्थ को शत्रुजय के नाम से प्रख्यात करें।"
इस प्रकार उसने तीर्थ का सार्थक नाम प्रतिष्ठित किया और पृथ्वी पर वह नाम प्रसिद्ध हो गया। नव्य नाम प्रायः प्रसिद्धि को धारण करता है।
जिनेश्वर रूपी चन्द्र को देखकर चन्द्रशेखर की मोहनिद्रा भी दूर हो गयी। वह भी अपने दुष्कृत को निन्दा करता हुआ पश्चाताप करने लगा।
महोदय की इच्छा वाले, पवित्र बुद्धि वाले उसने महोदय नाम के मुनि को पूछा- "मेरी शुद्धि कैसे हो सकती है ?"
___ संयमी मुनिवर ने कहा-“यदि पाप की सम्यग् आलोचना करके इस तीर्थ पर तप करोगे तो तुम्हारी भी सिद्धि हो सकेगी।" कहा है
"करोड़ों जन्मों में उपाजित कर्म तीव्र तप से नष्ट हो जाते हैं। क्या प्रदीप्त अग्नि बहुत से काष्ठ को भी नहीं जलाती है ?"
यह सुनकर उसने अपने पाप की आलोचना की और उन्हीं महात्मा के पास व्रत स्वीकार कर, मासक्षमण आदि की तपश्चर्या करके वहीं से मोक्ष में गया।
इधर निष्कण्टक राज्य को भोगता हुआ शुकराज राजा परमार्हत श्रावक राजाओं के लिए एक आदर्श रूप बना। -
उसने बाह्य और अभ्यन्तर शत्रुओं का जय किया। तीन प्रकार से यात्राएँ की और चारों प्रकार से संघ-भक्ति की तथा अनेक प्रकार से चैत्य पूजा आदि की। उसके पद्मावती मुख्य रानी थी और वायुवेगा आदि बहुत सी विद्याधरियाँ व राजपुत्रियाँ रानियाँ थीं। लक्ष्मी के निवासस्थान पद्मसरोवर की भाँति पद्मावती के पद्माकर नाम का पुत्र प्रसिद्ध हुआ। वायुवेगा के वायुसार नाम