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श्राविधि/२८०
यहाँ गुण के भण्डार एवं विद्वानों में मुकुट समान भी जिनहंसगणि मादि ने शोधन-लेखन आदि कार्यों में उत्साहपूर्वक सहायता की ॥१३॥
विधि की विविधता और श्रुत के मतान्तरों के कारण इस शास्त्र में यदि कोई उत्सूत्रमालेखन हुमा हो तो वह मेरा पाप मिथ्या हो ॥१४॥
इस विविध कौमुदी नाम की वृत्ति (टीका) के अक्षरों की गणना करने से इस टीका में छह हजार सात सौ इकसठ श्लोक हुए ॥१५॥
श्रावकों के हित के लिए श्राद्धविधिप्रकरण की सूत्रयुक्त, विद्वानों को जय प्रदान करने वाली यह टीका दीर्घकाल तक जय पाये ॥१६॥