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श्रावक जीवन-दर्शन/३०१
"माता ही यदि विष दे देवे और पिता ही पुत्र को बेच दे और राजा ही सर्वस्व हर ले तो फिर उपाय ही क्या है ?"
सोमश्रेष्ठी अत्यन्त खिन्न हो गया। उसने पुत्र को कहा-"बेटा ! दुर्भाग्य से अपना भयंकर पराभव हुआ है।" कहा है--.
"प्राणी माता-पिता के पराभव को सहन कर लेते हैं परन्तु पत्नी के पराभव को सहन करने में तो तिथंच भी समर्थ नहीं है ।"
"जिस किसी उपाय से भी इस विषय में प्रतिक्रिया करना योग्य है। द्रव्य का व्यय ही एक उपाय दिखता है। हमारे पास छह लाख रुपये हैं, उनमें से पांच लाख साथ लेकर दूर देश में जाऊंगा और किसी बलवान राजा की सेवा करूंगा, फिर उसके बल से तत्क्षण तेरी माता को मुक्त कराऊंगा।"
स्वयं में सामर्थ्य न हो अथवा सामर्थ्यवान् अपने हाथ में न हो तो अपने कार्य की सिद्धि नहीं हो सकती है। जहाज या नाव का आश्रय लिये बिना सागर को पार करने में कौन समर्थ है ? इस प्रकार कहकर धन को लेकर वह सेठ किसी दिशा में चुपचाप चला गया। सचमुच पत्नी के लिए पुरुष क्या काम नहीं करता है ? कहा है-"प्राणप्रिया स्त्री के लिए पुरुष दुष्कर कार्यों को भी कर देता है, क्या द्रौपदी के लिए पाण्डवों ने सागर पार नहीं किया था ?"
इधर घर पर रहे श्रीदत्त के एक पुत्री पैदा हुई। अहो ! अवसर देखकर देव भी अपना जोर चलाता है।
श्रीदत्त ने सोचा-"मेरी दुःखपरम्परा को धिक्कार हो, इधर माता-पिता का वियोग, धन की हानि, राजा की दुश्मनी और इधर पुत्री का जन्म।"
दूसरों को विघ्न डालने में ही सन्तोषी यह देव पता नहीं अब क्या करेगा ? इस प्रकार खिन्न हुए उसने दस दिन बिताये। उसके बाद मित्र शंखदत्त ने श्रीदत्त को कहा-"तुम खेद मत करो, धन कमाने के लिए हम सामद्रिक-यात्रा के लिए निकल पडे। जो लाभ होगा, उसका प्राधाआधा बाँट लेंगे।" श्रीदत्त ने यह बात स्वीकार कर ली।
अपने सम्बन्धी को अपनी पत्नी व पुत्री सौंपकर, तैयार होकर वह मित्र के साथ यान में चढ़ गया और क्रमश: सिंहलद्वीप पहुँचा। वहाँ वे सब नौ वर्ष रहे।
बहुत-सा लाभ प्राप्त कर वे दोनों कटाहद्वीप में गये। वहाँ वे खुश होकर दो वर्ष तक रहे । वहाँ पर भी आठ करोड़ द्रव्य कमाया। भाग्य और पुरुषार्थ का योग होने पर धन कमाने में क्या आश्चर्य है ? - वे दोनों बहुत सा सामान तथा हाथियों से अपने वाहनों को भरकर वापस रवाना हुए। एक बार वे दोनों जहाज के छज्जे पर बैठे हुए थे, तभी उन्होंने समुद्र में तैरती हुई एक पेटी देखी। उसे देखकर उन्होंने नाविकों के द्वारा उसे शीघ्र ग्रहण कर लिया। इसके भीतर में से जो निकले वह प्राधा-प्राधा लेंगे, इस प्रकार निश्चय करने के बाद मध्यस्थों की साक्षी में उन्होंने उस पेटी को खोला और उसमें उन्होंने नीम के पत्तों से ढकी हुई नीले अंग वाली चेतनारहित एक कन्या देखी।