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श्रावक जीवन-दर्शन/३१६
"यशोमती बगुले की भाँति पति व पुत्रवियोग से उभयभ्रष्ट हो गयी, इससे उसे वैराग्य उत्पन्न हुआ और जैन साध्वी का योग नहीं मिलने से वह योगिनी हो गयी।
"मैं वही यशोमती हूँ। सम्यग् भव-भावना से मुझे कुछ ज्ञान उत्पन्न हुआ है और उससे मैं यह सब जानती हूँ। उसी चतुर दक्ष यक्ष ने आकाशवाणी से मेरे मागे ये बातें कहीं थीं और मैंने भी ये सब वास्तविक बातें कह दी हैं।"
___ इन अनुचित बातों को सुनकर राजा को अत्यन्त ही क्रोध उत्पन्न हुमा, साथ में अत्यन्त खेद भी हुमा। राजा के घर की ऐसी दुर्दशा से किसका मन दुःखी नहीं होगा? उसके बाद सत्य अर्थ को जानने वाली योगिनी ने अपनी भाषा में राजा को प्रतिबोध देने के लिए कहा
'कवरण केरा पुत्र-मित्रा रे, कवरण केरी नारी। मुहिमा मोहिमो मेरी, मूढ़ भणइ अविचारी॥ जागि न जोगि हो हो हो, हो जाई न जोग विचारा। मल्हिन मारग प्रादरि मारग जिम पामिए भवपारा ॥ प्रतिहिं गहना प्रतिहिं कूडा, अतिहिं अथिर संसारा। भामो छांडी योग जु मांडी, कोजइ जिणधर्म सारा॥ मोहे मोहिमो कोहिइ खोहिनो, लोहिइ वाहिनो धाई। मुहिना बिहुं भवि अवकारणि, मूरख दुखिनो थाइ ।। एक ने काजि बीह खंचे, त्रिणि संचे च्यारि वारे।
पांचइ पाले छइ टाले, “प्रापिइ आप उतारे ॥ .. . अर्थ यहाँ कौन किसका पुत्र है ? कौन किसका मित्र है और कौन किसकी नारी है ? मोह से मोहित होकर मूढ़ पात्मा बिना सोचे-समझे ही 'मेरा-मेरा' करता है। हे योगी! तू जग न । तेरे योग के विचार चले न जायें (अतः सावधान बन) द्रव्य मार्ग की तरह मिले हुए (मोक्ष) मार्ग का आदर कर ! जिससे तू शीघ्र भव से पार होगा। यह संसार अति गहन, अति कूट और अत्यन्त अस्थिर है। संसार के भ्रमण को छोड योग से प्रेम कर और सारभूत जिनधर्म का प्राचरण कर ।
"मोह से मोहित बना। क्रोध से क्षुब्ध बना और लोभ से जहाँ-तहाँ दौड़ा इस प्रकार मूर्ख व्यक्ति दोनों भवों में अपकारिणी प्रवृत्ति द्वारा व्यर्थ ही दुःखी होता है। - "प्रात्मा की शुद्धि के लिए राग-द्वेष को छोड़ दो। रत्नत्रयी का संचय करो। चार कषायों को दूर करो, पाँच महाव्रतों का पालन करो और काम, क्रोध, लोभ, मद, मान और हर्ष रूप छह अन्तरंग शत्रुओं को दूर करो, जिससे प्रात्मा शीघ्र ही भव के पार को प्राप्त कर लेती है।"
योगिनी का यह उपदेश सुनकर राजा का क्रोध एकदम शान्त हो गया और उसके हृदय में वैराग्य पदा हो गया। उसकी अनुज्ञा लेकर वह चन्द्रांक के साथ अपने नगर के उद्यान में पाया। फिर चन्द्रांक को भेजकर अपने पुत्रों सहित मंत्रियों को बुलवाकर संसार से उद्विग्न और तत्त्व में