Book Title: Shravak Jivan Darshan
Author(s): Ratnasensuri
Publisher: Mehta Rikhabdas Amichandji

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Page 316
________________ श्रावक जीवन-दर्शन/२९६ पूर्व के दुर्भाग्य से उत्पन्न दुर्ध्यान के कारण उसकी यह स्थिति हो गयी, फिर भी वह शीघ्र ही सम्यक्त्व के महान् फल को प्राप्त करेगा। राजा का अग्निसंस्कार आदि उत्तरकार्य करने के बाद हंसी व सारसी ने भी दीक्षा ले ली और दोनों मरकर प्रथम देवलोक में देवियाँ बनीं। उन दोनों ने अवधिज्ञान से अपने पति के जीव को तोते के रूप में देखा, इससे उन्हें खेद हुआ। उन्होंने पाकर तोते को प्रतिबोध दिया। उसे उसी तीर्थ में अनशन कराया और वह मरकर उन देवियों का पति बना। उसके लिए वह उचित था। कालक्रम से वे दोनों देवियाँ देवलोक से देव से पहले च्युत हुई। उस समय देव ने केवली भगवन्त से पूछा-"प्रभो ! मैं सुलभबोधि हूँ या दुर्लभबोधि हूँ?" प्रभु ने कहा- "सुलभबोधि हो।" उसने कहा-"कैसे ?" केवली भगवन्त ने कहा-"तुम्हारी जो देवियाँ च्युत हुई हैं, उनमें हंसो का जीव क्षितिप्रतिष्ठित नगर में ऋतुध्वज राजा का पुत्र मृगध्वज नाम का राजा हुआ है और सारसी का जीव अपने स्थान से च्युत होकर काश्मीर देश के समीप विमलाचल के आश्रम में पूर्वकृत माया के कारण गंगलि मुनि की पुत्री हुआ है, उसका नाम कमलमाला है और तू अब उन दोनों का जातिस्मरणज्ञानवाला पुत्र होगा।" श्रीदत्तमुनि ने कहा--"हे राजन् ! केवली के मुख से यह बात सुनकर वह देव तोते के रूप में सुन्दर वचनों द्वारा तुझे उस आश्रम में ले गया, कन्या के योग्य अलंकार दिये और फिर लाकर पुनः सैन्य के साथ जोड़कर देवलोक में चला गया। वह देव वहाँ से च्युत होकर तुम दोनों का पुत्र हुआ है। अपने वृत्तान्त को सुनकर जातिस्मरण ज्ञान से उसने सोचा-"पूर्वभव में जो मेरी पत्नियाँ थीं वे ही मेरे माता-पिता हो गये हैं, अतः उन्हें "हे माता ! हे पिताजी !" कहकर कैसे बुलाऊँ ? इस प्रकार विचार कर उसने सोचा"तब तो मौन रहना ही श्रेष्ठ है।" - "इस प्रकार बिना किसी दोष के उसने मौन धारण किया था। हमारा वचन उल्लंघनीय नहीं है। इस प्रकार मानता हुआ वह अभी बोला है। बालभाव होने पर भी पूर्वभव के संस्कार के कारण उसके सम्यक्त्व आदि संस्कार दृढ़ हैं । शुकराज ने भी कहा-"आपने जैसा कहा, वह सब सत्य है।" - ज्ञानी भगवन्त ने उसे कहा- हे शुकराज! इसमें ग्राश्चर्य क्या है ? भवनाटक तो इसी प्रकार का है, यहाँ पर समस्त जीवों के साथ सभी प्रकार के सम्बन्ध पूर्व में अनन्त बार प्राप्त हुए हैं।" कहा भी है-"जो पिता होता है, वह पुत्र बनता है और जो पुत्र होता है, वह पिता बनता है। जो स्त्री होती है, वह माता बनती है और जो माता होती है, वह स्त्री बनती है।" "ऐसी कोई जाति नहीं है, ऐसी कोई योनि नहीं है, ऐसा कोई स्थान नहीं है, ऐसा कोई कुल

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