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श्राद्धविधि / २६४
अहो ! प्राणियों की यह कैसी मूढ़ता है कि वे माया से अपनी आत्मा को परलोक में नीचगतिगामी करते हैं ।
एक बार राजा उन दोनों रानियों के साथ गवाक्ष में बैठा हुआ था, उसी समय उन्होंने नगर के बाहर निष्पाप मनुष्यों के संघ को मार्ग में जाते हुए देखा। किसी मनुष्य को पूछने पर उस जानकारी प्राप्त कर कहा - "हे देव ! यह शंखपुर से प्राया हुआ संघ विमलाचल महातीर्थं की ओर जा रहा है ।"
उसके बाद राजा भी कौतुक से उस संघ के बीच गया और उसने वहाँ श्रुतसागर प्राचार्य भगवन्त को देखकर वन्दन किया ।
राजा ने उनको पूछा - " हे पवित्र पुरुष ! यह विमलाचल पर्वत यहाँ कहाँ आया हुआ है ? किस कारण से वह तीर्थ है और उसकी क्या महिमा है ?".
क्षीरास्रवमहालब्धि वाले उन्होंने कहा - "विश्व में धर्म से ही इष्ट सिद्धि होती है अतः वही सारभूत है । धर्म में भी अरिहन्त का धर्म और उसमें भी सम्यग्दर्शन सारभूत है । सम्यग्दर्शन के बिना व्रत, कष्ट आदि वंध्यवृक्ष के समान है । वह धर्म तत्त्वत्रयी रूप है और उसमें मुख्य जिनेश्वर भगवन्त हैं । जिनेश्वरों में सर्वप्रथम आदिनाथ प्रभु हैं और उनकी इस तीर्थ में प्रति महिमा है । सभी तीर्थों में विमलाचल प्रथम तीर्थं कहा गया है । भिन्न-भिन्न कारणों से उसके 'बहुत नाम हैं जैसे
1. सिद्धक्षेत्र 2. तीर्थराज 3. मरुदेव 4. भगीरथ 5. विमलाचल 6. बाहुबली 7. सहस्रकमल 8. तालध्वज 9. कदम्ब 10. शतपत्र 11. नगाधिराज 12. अष्टोत्तरशतकूट 13. सहस्रपत्र 14. ढंक 15. लौहित्य 16. कपर्दनिवास 17. सिद्धिशेखर 18. पुंडरीक 19. मुक्तिनिलय 20 सिद्धिपर्वत और 21. शत्रुंजय | इस तीर्थ के ये इक्कीस नाम देवताओं, मनुष्यों तथा ऋषियों ने किये हैं । ये इक्कीस नाम इस अवसर्पिणी में हुए हैं । इनमें से कुछ नाम भूतकाल में हुए हैं और कुछ नाम भविष्यत्काल में होंगे ।
इनमें से 'शत्रु'जय' यह नाम भवान्तर में तुम्हारे द्वारा ही होगा। यह बात हमने ज्ञानियों के पास सुनी है।
सुधर्मास्वामी विरचित महाकल्प में इस तीर्थ के 108 नाम
1. विमलाद्रि 2. सुरशैल 3. सिद्धिक्षेत्र 4. महाचल
5. शत्रु जय 12. अकर्मक
भी बतलाये हैं, जैसे6. पुंडरीक 7. पुण्यराशि 13. महापद्म 14 पुष्पदन्त 19. पृथ्वीपीठ 20. प्रभुपद
8. श्रीपद 9. सुभद्र 10. पर्वतेन्द्र 11. दृढ़शक्ति 15. शाश्वत 16. सर्वकामप्रद 17. मुक्तिगृह 18. महातीर्थ
21. पातालमूल 22. कैलास 23. क्षितिमंडल मण्डन इत्यादि 108 नाम हैं ।
इस अवसर्पिणी में पहले चार तीर्थंकरों के यहाँ समवसरण हुए हैं। भविष्य में नेमिनाथ को छोड़ उन्नीस तीर्थंकरों के समवसरण यहाँ होंगे । भूतकाल में यहाँ अनन्त आत्माएँ सिद्ध हुई हैं। और भविष्य में भी होंगी, इस कारण इसे सिद्धक्षेत्र भी कहते हैं ।