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श्रावक जीवन-दर्शन/२६१ चन्द्रमा में कलंक है, सूर्य में तीक्ष्णता है, आकाश में शून्यता है, पवन गतिमान (चंचल) है, देवमणि पत्थर है, कल्पवृक्ष काष्ठ है, पृथ्वी रज (धूल) है, सागर खारा है, बादल श्याममुख है, अग्नि जलाने वाली है, पानी नीचे बहने वाला है, मेरु पर्वत कठोर है, कर्पूर अस्थिर है, कस्तूरी काली है, सज्जन निर्धन है, धनवान मूर्ख है, राजा लालची है, इसी प्रकार मेरा यह पुत्र भी मूक है, अहो! यह विधिरत्न को भी दूषित करने वाला है। इस प्रकार बहुत से लोग जोर से शोक करने लगे। बड़ों की आपत्ति किसके हृदय को दुःखी नहीं करती है ?
कुछ समय बाद लोगों की आँखों रूपो कौमुदी को प्रानन्द देने वाला कौमुदो महोत्सव पाया, जिसमें लोगों के क्रीड़ारस का सागर जागृत हुआ। उस समय राजा पुनः अपने पुत्र व प्रिया के साथ
में पाया। राजा ने उस अाम्रवक्ष को देखकर खिन्न होकर अपनी पत्नी को कहा"हे देवी ! विषवृक्ष के समान इस वृक्ष को दूर से ही छोड़ दो। इसी वृक्ष के नीचे अपने पुत्ररत्न की यह दशा हुई है।" इतना कहकर राजा ज्योंही आगे बढ़ा त्योंहो उस आम्रवृक्ष के नीचे देव-दुन्दुभि की आवाज हुई। पूछताछ करने पर किसी ने कहा- "श्रीदत्त मुनि को अभी केवलज्ञान उत्पन्न हुआ है, देवता लोग उसका महोत्सव कर रहे हैं।"
"मैं अपने पुत्र का वृत्तान्त पूछू"--इस प्रकार उत्सुक बना हुआ राजा अपने परिवार के साथ वहाँ गया और मूनि को नमस्कार कर पूत्र सहित वहाँ बैठ गया।
मुनिवर ने क्लेश का नाश करने वाली अमृत के समान मधुर देशना दी। उसके बाद राजा ने पूछा- "हे नाथ ! मेरे इस पुत्र की वाणी मूक होने का क्या कारण है ?"
मुनिवर ने कहा-"यह बालक अभी बोलेगा।" राजा ने कहा--''यह हमारी ओर ही क्यों देखता है ?" मुनि ने कहा-“हे शुकराज ! तुम हमें विधिपूर्वक वन्दन करो।" इस प्रकार कहने पर शुकराज ने उच्च स्वर से सूत्रोच्चारपूर्वक मुनि को वन्दन किया ।
"अहो! महर्षि की कितनी बड़ी महिमा है कि मंत्र-तंत्र आदि के बिना भी इसकी वाणी शीघ्र प्रगट हो गई !" यह देख सभी श्रोताओं को आश्चर्य हुआ।
राजा ने पूछा-"यह क्या ?"
मुनिवर ने कहा- "इस आकस्मिक घटना का कारण पूर्वजन्म का ही है। उसे हे भव्यजनो! सावधान होकर सुनो
..... (४) पूर्वभव कथन पूर्वकाल में मलय देश में श्री भद्दिलपुर नाम का एक नगर था। वहाँ याचकजनों को अलंकार आदि देने वाला तथा दुश्मनों को बन्दीगृह में डालने वाला चातुर्य, औदार्य, शौर्य आदि गुणों के स्थानरूप आश्चर्यकारी चरित्रवाला जितारि नाम का राजा था।
एक बार वह सभामण्डप में बैठा हुआ था तब द्वारपाल ने आकर उसे विज्ञप्ति की"हे राजन् ! विजयदेव राजा का शुद्धचित्तवाला दूत आपके दर्शन के लिए द्वार पर खड़ा है।"