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श्रावक जीवन-दर्शन/२५३
शोभा नहीं होती है। आग आदि का उपद्रव होने पर एकान्त मकान में प्रवेश व निर्गमन भी कठिन होता है।
शल्य, भस्म व क्षात्र आदि दोषों से तथा निषिद्ध प्राय आदि से रहित स्थान योग्य स्थान कहलाता है।
दब, कोंपल, दर्भ के गच्छे. प्रशस्त वर्ण-गन्ध वाली मिट्टी हो, मीठा जल तथा निधान वाली भूमि उत्तम भूमि कहलाती है। कहा भी है-"उष्णकाल में शीत स्पर्शवाली तथा शीत ऋतु में उष्ण स्पर्शवाली तथा वर्षा में उभय स्पर्शवाली हो, वह सभी प्राणियों के लिए शुभ है।"
एक हाथ खोदने के बाद उतनी ही मिट्टी को उस खड्ड में डाला जाय और मिट्टी बढ़ जाय तो उसे श्रेष्ठ समझना चाहिए। मिट्टी बराबर हो तो मध्यम और कम पड़े तो उस भूमि को हीन समझना चाहिए।
भूमि में खड्डा करने के बाद उसे जल से भरा जाय और सौ कदम चलने के बाद भी उस खड्डे में उतना ही जल रहे तो उस भूमि को उत्तम समझना चाहिए। अंगुल प्रमाण कम जल रहे तो मध्यम और उससे भी कम जल रहे तो उस भूमि को अधम समझना चाहिए।
जिस भूमि के खड्ड में रखे गये पुष्प दूसरे दिन भी वैसे ही रहें तो उस भूमि को उत्तम समझना चाहिए। वे पुष्प आधे सूख जायें तो उस भूमि को मध्यम व एकदम सूख जायें तो उस भूमि को अधम समझना चाहिए।
जिस भूमि में बोये हुए चावल तीन दिन में उग जायें तो उस भूमि को उत्तम समझना चाहिए तथा पाँच व सात दिन में उगें तो क्रमशः मध्यम व हीन समझना चाहिए।
भूमि में बांबी हो तो उस भूमि पर रहने से बीमारी होती है। पोली भूमि पर रहने से दरिद्रता, फटी हुई भूमि पर रहने से मृत्यु होती है। शल्य वाली भूमि दुःख देती है अतः प्रयत्नपूर्वक शल्य जानने चाहिए।
मनुष्य का शल्य (हड्डी) निकले तो मनुष्य को हानि होती है। गधे की हड्डी निकले तो राजादि से भय होता है, कुत्ते की हड्डी निकले तो बालक की मृत्यु होती है, बालक की हड्डी निकले तो घर के मालिक को प्रवास होता है, गाय की हड्डी निकले तो गोधन की हानि होती है। मनुष्य के बाल, कपाल व भस्म निकले तो मृत्यु होती है।
प्रथम व अन्तिम प्रहर को छोड़कर अर्थात् दूसरे व तीसरे प्रहर की वृक्ष व ध्वजा आदि की (मकान पर) छाया हमेशा दुःख देती है।
अरिहन्त की पीठ, ब्रह्मा व विष्णु का पड़ोस, चण्डिका व सूर्य की नजर तथा महादेव का सभी (पीठ, पड़ोस और नजर) छोड़ना चाहिए।
आत्मकल्याण के इच्छुक व्यक्ति को वासुदेव की बायीं तरफ को, ब्रह्मा की दाहिनी तरफ को तथा शंकर का निर्माल्य स्नात्र जल, ध्वजा की छाया तथा विलेपन छोड़ना चाहिए। अरिहन्त के शिखर की छाया और अरिहन्त की दृष्टि उत्तम कही गयी है।