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श्रादविधि/२६२
द्वार का लाभ मिला'-विचार कर सोने की चौंसठ जीभे भेंट दी। इस प्रकार करते हुए उसे दो करोड़ सत्ताणु लाख द्रव्य खर्च हुआ। मंत्री ने पूजा के लिए चौबीस गाँव व चौबीस बगीचे भेंट दिये।
वाग्भट्ट मंत्री के भाई प्रांबड़ मंत्री ने भरूच में दुष्ट व्यन्तरी के उपद्रव को दूर करने वाले श्री हेमचन्द्रसूरिजी म. के सहयोग से अठारह हाथ ऊंचे शकुनिविहार नामक प्रासाद का जीर्णोद्धार कराया।
मल्लिकार्जुन राजा के कोश सम्बन्धी बत्तीस धड़ी स्वर्ण का कलश, स्वर्णदण्ड व ध्वजा आदि उस पर चढ़ायी गई। मंगलदीप के प्रसंग पर याचकों को बत्तीस लाख द्रम्म दिये गये ।
___ जीर्ण चत्य के उद्धारपूर्वक ही नवीन चैत्य कराना उचित है। इसी कारण सम्प्रति राजा ने नवासी हजार मन्दिरों का जीर्णोद्धार कराया था और छत्तीस हजार नवीन मन्दिर बनवाये थे। इसी प्रकार कुमारपाल व वस्तुपाल आदि ने भी नवीन मन्दिरों की अपेक्षा बहुत से मन्दिरों का जीर्णोद्धार कराया था। उनकी संख्या भी पहले कही जा चुकी है। “मन्दिर तैयार होते ही शीघ्र ही प्रतिमा स्थापित कर देनी चाहिए।"
श्री हरिभद्रसूरिजी म. ने कहा है-"बुद्धिमान व्यक्ति को जिनमन्दिर तैयार होने पर जिनबिम्ब शीघ्र ही तैयार करना चाहिए। क्योंकि अधिष्ठान वाले मन्दिर की वृद्धि होती रहती है अर्थात् मन्दिर में प्रतिमा की प्रतिष्ठा होने पर मन्दिर की वृद्धि होती है। मन्दिर में कुंडी, कलश, ओरसिया, दीप आदि सभी प्रकार की सामग्री देनी चाहिए। तथा शक्ति अनुसार भण्डार, देव की आमदनी, वाड़ी आदि कराना चाहिए ।
राजादि मन्दिर बनाने वाले हों तो उन्हें प्रचुर कोष, ग्राम, गोकुल आदि देने चाहिए कहा है-"मालवा देश के जाकुड़ी मंत्री ने गिरनार पर्वत पर पूर्वकाष्ठ मन्दिर के स्थान पर पाषाण का मन्दिर बनवाना प्रारम्भ किया। दुर्भाग्य से उसका स्वर्गवास हो गया। उसके बाद एक सौ पैंतीस वर्ष के बाद सिद्धराज जयसिंह राजा के दण्डाधिपति सज्जन ने सौराष्ट्र देश की तीन वर्ष की प्राय सत्ताईस लाख द्रम्म खर्चकर बनवाया। राजा ने जब वह धन मांगा तब उसने कहा-"मैंने वह धन गिरनार पर्वत पर स्थापित किया।" राजा ऊपर गया और उसने नवीन चैत्य को देखा। खुश होकर वह बोला-"यह किसने बनवाया है?"
सज्जन ने कहा-"आपने।"
सुनकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। फिर सही बात बतलाकर कहा-“हे राजन् ! या तो आप इन श्रेष्ठियों के द्वारा दिया गया इतना धन स्वीकार करें अथवा मन्दिर-निर्माण का पुण्य ।"
विवेकी राजा ने पुण्य को ही स्वीकार किया। राजा ने प्रसन्न होकर उस नेमिनाथ चैत्य को पूजा के लिए बारह गाँव भी प्रदान किये ।
जीवित स्वामी की प्रतिमा का मन्दिर प्रभावती रानी ने बनवाया। फिर क्रमश: चण्डप्रद्योत राजा ने उसकी पूजा के लिए बारह हजार गाँव प्रदान किये । उसका वृत्तान्त इस प्रकार है