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श्राद्धविधि/२२८
प्रातः काल होने पर राजा ने अपना खजाना खाली देखा और सेठ का घर मणि-स्वर्ण आदि से भरा हुआ देखा। इसे देख राजा को अत्यन्त ही आश्चर्य हुआ । राजा ने उसके पास क्षमायाचना की। राजा ने पूछा- “सेठ ! यह सब धन तुम्हारे घर में कैसे चला गया ?"
उसने कहा-"राजन् ! मुझे कुछ भी पता नहीं है, परन्तु पुण्य के प्रभाव से मुझे पर्वदिनों में लाभ ही होता है"-इस प्रकार सही बात कहने पर पर्व की महिमा को सुनकर राजा को भी जातिस्मरण ज्ञान हुआ और उसने भी जीवन पर्यन्त छह पर्वतिथियों के पालन का नियम स्वीकार किया।
___ उसी समय कोषाध्यक्ष ने आकर राजा को शुभ समाचार दिये कि "वर्षा के जलप्रवाह से भरने वाले सरोवर की भाँति सारा खजाना धन से भर गया है।" इसे सुनकर राजा को आश्चर्य के साथ अत्यन्त खुशी हुई। उसी समय चंचल कुण्डलादि आभूषणों से सुशोभित देव प्रगट हुआ और बोला-“हे राजन् ! क्या पूर्व भव के मित्र श्रेष्ठी देव को तुम पहिचानते हो? मैंने ही पूर्वप्रतिज्ञा के अनुसार तुम्हारे प्रतिबोध के लिए तथा पर्व दिन में निष्ठापूर्वक आराधना करने वाले श्रेष्ठी के सान्निध्य के लिए यह सब कुछ किया था, अतः धर्म में प्रमाद मत करना। अब में तेली व किसान देव, जो राजा बने हैं उनके प्रतिबोध के लिए जाता है।" इस प्रकार कहकर उस देव ने उन दोनों राजाओं को अपना पूर्वभव स्वप्न में दिखलाया। उन दोनों को भी जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ और उन्होंने श्राद्ध-धर्म स्वीकार किया और विशेषकर छह पर्वदिनों में वे भी उत्तम आराधना करने लगे।
श्रेष्ठी देव की वाणी से उन तीनों राजाओं ने अपने-अपने देश में अमारि की घोषणा की, अपने देश को सातों व्यसनों से मुक्त किया । स्थान-स्थान पर नवीन मन्दिरों का निर्माण कराया। तीर्थ-यात्रा व सार्मिक वात्सल्य आदि के अनेक कार्य किये।
पर्व के पहले दिन पटह को उद्घोषणा पूर्वक सर्वलोकों को धर्ममार्ग में इस प्रकार जोड़ा कि जिससे एकछत्र साम्राज्य की तरह जैनधर्म की महिमा होने लगी। तीर्थंकर की विहारभूमि की तरह उन देशों में श्रेष्ठी देव के सान्निध्य के कारण ईति, अकाल, स्वचक्र-परचक्र का भय, व्याधि, अशिव आदि उपद्रव नहीं हुए।
ऐसी कौनसी बात है जो दुःसाध्य होने पर भी धर्म के प्रभाव से सुसाध्य न बने ।
इस प्रकार सुख व धर्ममय राजलक्ष्मी को दीर्घकाल तक भोगकर अन्त में उन तीनों राजाओं ने दीक्षा स्वीकार की। दीर्घ तप के प्रभाव से उन्हें केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। श्रेष्ठी देव भी स्थानस्थान पर उनकी महिमा करने लगा। वे केवली भगवन्त भी पृथ्वीतल पर विचर कर अपनी
आत्मकथा व उपदेशों के द्वारा पर्व एवं धर्म साम्राज्य की महिमा बतलाकर अनेक भव्यजीवों का निस्तार कर मोक्ष में गये।
श्रेष्ठी देव भी अच्युत देवलोक से च्यवकर बड़े राजा बने और पर्व की महिमा को सुनकर उन्हें जातिस्मरण ज्ञान हुआ। अन्त में, दीक्षा लेकर वे मोक्ष गये।