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श्राद्धविषि/२३२
नाशक दवाई छांटने का त्याग करना चाहिए। स काय की रक्षा निमित्त ईधन, अग्नि आदि की
करन का नियम करना ये चारित्राचार तथा स्थूल प्राणातिपात व्रत के नियम हैं।
किसी पर झूठा कलंक न दें। प्राक्रोश न करें। कठोर वचन न बोलें, देव-गुरु की सौगन्ध न खायें। किसी की चुगली न करें। किसी की निन्दा न करें। ये द्वितीय व्रत के नियम हैं।
माता-पिता की दृष्टि बचाकर काम न करें।
दिन में ब्रह्मचर्य का पालन करें व रात्रि में पुरुष को परस्त्री का तथा स्त्री को परपुरुष का सेवन नहीं करना चाहिए।
धन-धान्य आदि नौ प्रकार के परिग्रह के परिमाण में संक्षेप करें।
दिक् परिमाण व्रत में भी दूसरे को भेजने का, दूसरे के साथ सन्देशा कहलाने का, अधोभूमि में गमन करने आदि का त्याग करें।
स्नान, अंगराग, धूप, विलेपन, आभरण, फूल, तंबोल, बरास, अगुरु, कुकुम, अंबर, कस्तूरी प्रादि का परिमाण करें।
मजीठ, लाख, कसुम्बा तथा गुली इन रंगो से रंगे हुए वस्त्रों का परिमाण करें। रत्न, वज्र, मणि, स्वर्ण, रजत, मोती आदि का परिमाण करें।
___ जंबीरफल, प्राम, जामुन, रायण, नारंगी, बिजोरा, ककड़ी, अखरोट, वायम, कथ, टिंबरु, बेलफल, खजूर, द्राक्ष, दाडिम, उत्ततिय, नारियल, केला, बेर, बिल्लु, चीभड़ा, चीभड़ी, कर, करमदे, भोरड़, इमली, अंकुरित अनेक जाति के फूल, पत्र, सचित्त बहुबीज, अनन्तकाय आदि का भी त्याग करें। विगई तथा विगईगत वस्तु का परिमारण करें।
वस्त्र धोना, लोपना, क्षेत्र-खनन करना, स्नान, अन्य की जू निकालना तथा अनेक प्रकार के क्षेत्र के कार्यों का संक्षेप करना चाहिए ।
कूटना, पीसना, असत्य साक्षी देने आदि का तथा जल में स्नान, अन्न रांधने का, उबटन आदि का संक्षेप करना।
देशावगासिक व्रत में भू-खनन, पानी मंगाने का, वस्त्र धोने का, स्नान करने का, जल पीने का, अग्नि जलाने का, दीपक प्रगटाने का, पंखा वगैरह चलाने का, हरी वनस्पति काटने का, गुरुजन के साथ बिना विचारे अमर्यादित बोलने का तथा प्रदत्तग्रहण करने का नियम धारण करना चाहिए । पुरुष तथा स्त्री के प्रासन पर बैठने का, शय्या में सोने का एवं स्त्री-पुरुष के साथ संभाषण करने का, नजर से देखने का. व्यवहार, दिशा, भोग-परिभोग तथा समस्त अनर्थदण्ड में संक्षेप करना चाहिए। सामायिक, पौषध, अतिथिसंविभाग करने की संख्या नियत करनी चाहिए।
कूटना, पीसना, पकाना, भोजन करना, खोदना, वस्त्र रंगना, कातना, पीजना, लोढ़ना, सफेदी देना, लीपना, सुशोभित करना, वाहन की सवारी करना, अनावश्यक घास काटना, लीख आदि