________________
श्राद्धविधि / २३४
एक बार तीन ज्ञान के धारक देवशर्मा राजर्षि ने इस प्रकार उसका पूर्वभव कहा -- “क्षेमापुरी में सुव्रत नाम का सेठ था, जिसने यथाशक्ति चातुर्मासिक नियमों को स्वीकार किया था । उसका एक नौकर भी प्रतिवर्ष चातुर्मास में रात्रिभोजन, मधु, मद्य तथा मांस त्याग का नियम करता था । वही नौकर मरकर राजकुमार के रूप में तुम पैदा हुए हो और सुव्रत सेठ का जीव मरकर ऋद्धिमन्त देव हुआ है। उसी देव ने पूर्वभव की प्रीति के कारण तुम्हें दो रत्न दिये थे । इस प्रकार अपने पूर्वभव को सुनने से उस राजा को जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ। अनेक नियमों का पालन कर वह स्वर्ग में गया । वहाँ से च्यवकर महाविदेह में उत्पन्न होकर मोक्ष में जाएगा ।
5 चातुर्मासिक कृत्य सम्बन्धी लौकिक-शास्त्रों का समर्थन 5
लौकिक ग्रन्थों में भी ये बातें कही हैं । वशिष्ठ ने कहा है---"हे ब्रह्मदेव ! महासमुद्र में विष्णु क्यों सोते हैं और उनके सोने पर क्या त्याग करना चाहिए। और उस त्याग का क्या फल है ?" ब्रह्मदेव ने कहा - "हे वशिष्ठ ! विष्णु वास्तव में सोते नहीं हैं और न ही जागते हैं, परन्तु वर्षा ऋतु में विष्णु में इस प्रकार का उपचार किया जाता है । विष्णु जब योगनिद्रा में हों तब क्या - क्या छोड़ना चाहिए, सो सुनो
(चातुर्मास में) यात्रा नहीं करनी चाहिए और मिट्टी को नहीं खोदना चाहिए। जो बैंगन, चौले, बाल, कलथी, तुअर, कालिंगा, मूला तथा तांदलजा की भाजी का त्याग करता है तथा हे राजन् ! जो मनुष्य चातुर्मास में एक दफा भोजन करता है वह मनुष्य चतुर्भुज (देव) बनकर परम पद प्राप्त करता है ।
"जो मनुष्य रात्रिभोजन नहीं करता है तथा विशेष करके चातुर्मास में रात्रिभोजन नहीं करता है, वह इस लोक और परलोक में समस्त इच्छित वस्तु को प्राप्त करता है। जो मनुष्य विष्णु के सोने पर मद्य-मांस को छोड़ता है वह प्रत्येक मास में प्रश्वमेध यज्ञ करके सौ बरस तक जयवन्त वर्तता है ।" मार्कण्डेय बोले - "हे राजन् जो मनुष्य (चातुर्मास में) तेलमालिश नहीं करता है, वह बहुत से पुत्र व धन से युक्त नीरोग बनता है । पुष्पादि के भोगत्याग से मनुष्य स्वर्गलोक में पूजा जाता है । जो मनुष्य कड़वे, खट्ट े, तीखे, मीठे और खारे रसों का त्याग करता है, वह पुरुष कभी कुरूपता और दुर्भाग्य को प्राप्त नहीं करता है । "हे राजन् ! ताम्बूल के त्याग से व्यक्ति भोगी बनता है और लावण्य प्राप्त करता है ।" "हे राजन् ! चातुर्मास में गुड़ का त्याग करने से वह मनुष्य मधुर स्वर पाता है, फल, पत्र व शाक को छोड़ने से मनुष्य पुत्र व धन को पाता है ।"
" ताप से पकायी वस्तु के त्याग से मनुष्य पुत्र-पौत्रादि की संतति प्राप्त करता है और भूमि पर संथारा कर सोने वाला विष्णु का सेवक बनता है ।"
"दही व दूध के त्याग से मनुष्य गोलोक प्राप्त करता है। दो प्रहर तक जल का त्याग करने से वह मनुष्य रोगों से मुक्त बनता है ।"
“एकान्तर उपवास करने वाला ब्रह्मलोक में पूजा जाता है । जो 'पुरुष चातुर्मास में नाखून व केश नहीं काटता है, वह प्रतिदिन गंगास्नान का फल पाता है ।"
जो
मनुष्य अन्य के भोजन का त्याग करता है वह अनन्त पुण्य पाता है । जो मौनपूर्वक भोजन नहीं करता है, वह केवल पाप को भोगता है ।"
हमेशा मौनपूर्वक भोजन करने वाला उपवास का फल पाता है, अतः चातुर्मास में सर्व प्रयत्नपूर्वक व्रतधारी बनना चाहिए; इत्यादि भविष्योत्तर पुराण में कहा गया है । ¤