________________
श्रावक जीवन-दर्शन/२४१
पौना भाग नष्ट होता है। हजामत कराने से तृतीयांश फल नष्ट होता है। तीर्थयात्रा में दान लेने से समस्त फल नष्ट हो जाता है।"
"तीर्थयात्रा में एक ही बार भोजन लेना चाहिए। निर्जीव भूमि पर सोना चाहिए और स्त्री ऋतुवतो हो तो भो ब्रह्मचारी रहना चाहिए।"
उपयुक्त अभिग्रह लेने के बाद शक्ति अनुसार भेंट देकर राजा को प्रसन्न कर उसकी आज्ञा लेनी चाहिए। यात्रा हेत् यथाशक्ति विशिष्ट जिनमन्दिर तया सार्मिकों को विनय-बहमानपूर्वक आमंत्रण देना चाहिए। भक्तिपूर्वक गुरु को भी निमन्त्रण देना चाहिए, अमारि की घोषणा करनी चाहिए, चैत्य आदि में महापूजा आदि महोत्सव करना चाहिए। जिसके पास शंबल (भाता) न हो उसे शंबल देना चाहिए। जिसके पास वाहन न हो, उसे वाहन देना चाहिए और निराधार व्यक्तियों को धन व सद्वचन देना चाहिए। “जिसको जो आवश्यकता होगी, वह वस्तु दी जायेगी"-इस प्रकार की घोषणापूर्वक सार्थवाह की तरह उत्साहहीन लोगों को भी प्रोत्साहन देना चाहिए। ग्राडम्बर से सर्व प्रकार की तैयारियाँ करें। जैसे बड़े-बड़े चरू, बड़े-बड़े तपेले, तंबू, कनात, कड़ाह, चलते हुए कुए (बड़े-बड़े टैंकर), सरोवर (बड़े-बड़े बर्तन) आदि तैयार रखें । बैलगाड़ियाँ, सेजवालक, रथ, पालकी, बैल, ऊँट, घोड़े आदि साथ में रखें। .
श्रीसंघ की रक्षा के लिए मजबूत सुभटों को बुलाना चाहिए और उन्हें कवच, शिरस्त्राण आदि देकर सम्मानित करना चाहिए। गीत, नत्य तथा वाद्य-यंत्र आदि सामग्री तैयार करनी चाहिए। उसके बाद शुभ मुहूर्त में शुभ शकुन-निमित्त आदि से उत्साहवन्त होकर प्रस्थान करना चाहिए। वहाँ सकल संघ को इकट्ठा कर सुन्दर भोजन-पक्वान्न से सबको भोजन कराना चाहिए व सबको तांबूल देना चाहिए तथा पञ्चाङ्ग मडि, रेशमी वस्त्र प्रादि से उनका सत्कार करना चाहिए। सुप्रतिष्ठित मिष्ठ, पूज्य व भाग्यशाली व्यक्तियों के पास संघपति का तिलक कराना चाहिए । संघपूजा आदि महामहोत्सव करना चाहिए। दूसरों के पास भी यथोचित संघपति आदि का तिलक कराना चाहिए।
महाधर, आगे व पीछे रक्षण करने वाले, संघ के अध्यक्ष आदि का स्थापन करना चाहिए,
, उतारे आदि की व्यवस्था करनी चाहिए । तथा मार्ग में सभी साथियों की संभाल लेनी चाहिए। किसी के गाड़ी का पहिया आदि टूटने पर उसे योग्य सहायता करनी चाहिए । प्रत्येक गाँव व नगर के चैत्यों में स्नात्रपूजा, महाध्वजा-प्रदान व चैत्यपरिपाटी ग्रादि बड़ा महोत्सव करना चाहिए और जीर्ण मन्दिर का उद्धार करना चाहिए।
___ तीर्थ के दर्शन होने पर स्वर्ण, रत्न व मोती से बधामणी करनी चाहिए। लापसी, लड्डू आदि की लहाणी, सार्मिक का वात्सल्य व यथोचित दान देना चाहिए।
तीर्थ में प्रवेश के समय भव्य महोत्सव स्वयं करना, कराना चाहिए। प्रथम हर्ष निमित्त पूजा, भेंट आदि उपचार करना चाहिए। अष्टप्रकारी पूजा तथा विधिपूर्वक स्नात्र महोत्सव करना चाहिए। संघ-माला पहननी चाहिए तथा घी की धार देनी चाहिए। पहरामणी रखनी चाहिए।
की नवांगी पूजा करनी चाहिए। फलगह, कदलीगह आदि महापूजा करनी चाहिए। रेशमी वस्त्र की महाध्वजा का प्रारोपण करना चाहिए और अवारित दान देना चाहिए। रात्रिजागरण