________________
श्रावक जीवन-दर्शन / १७५ धूर्त लोगों से न ठगा जाये । द्रोहबुद्धि से कुछ भी घन न छुपायें । हाँ, किसी संकट के निवारण के लिए धन का संग्रह अवश्य करें ।
कुसंसर्ग के कारण भाई यदि गलत रास्ते पर चला जाय तो क्या करना चाहिए ? उसे बताते हुए कहते हैं - अविनीत भाई को उसके दोस्तों के द्वारा समझावें । चाचा, मामा, श्वसुर तथा साले के द्वारा उसे हित शिक्षा दिलायें परन्तु स्वयं सीधे उसकी तर्जना न करें क्योंकि ऐसा करने से वह बेशर्म बन जाता है और मर्यादा को भी तोड़ देता है ।
हृदय में स्नेह भाव रखकर बाहर से उसे सुधारने हेतु कोप का दिखावा भी करें। और यदि भाई पुनः सन्मार्ग पर श्रा जाय तो निष्कपट प्रेम से उसके साथ बातें करें । श्रनेक प्रयत्न करने पर भी यदि भाई न सुधरे तो "यह तो उसका स्वभाव है". मानकर उसकी उपेक्षा करें।
भाई की स्त्री और पुत्र आदि को दान व सम्मान आदि देने में समानदृष्टि रखनी चाहिए अर्थात् अपनी ही स्त्री व पुत्र के समान उनके साथ भी व्यवहार करना चाहिए। सौतेले भाई व उसकी स्त्री, उसके पुत्र आदि के साथ तो विशेषकर अच्छा व्यवहार करना चाहिए । सौतेले भाई आदि के साथ थोड़ा सा भी व्यवहार-भेद रखने से उनका मन बिगड़ता है और लोक में भी निन्दा होती है । इसी प्रकार पिता समान, माता समान और भाई समान अन्य लोकों के साथ भी औचित्य पालन करना चाहिए ।
-
कहा है – “जन्म देने वाले, पालन करने वाले, विद्या देने वाले, अन्न देने वाले और प्रारण बचाने वाले ये पाँच पिता कहलाते हैं ।"
"राजा की पत्नी, गुरु की पत्नी, पत्नी की माता, स्वयं की माता तथा धावमाता – ये पाँच माताएँ कहलाती हैं ।"
"सगा भाई, साथ में पढ़ने वाला, मित्र, रोग में सेवा करने वाला तथा मार्ग में बातचीत द्वारा मंत्री करने वाला - ये पाँच भाई कहलाते हैं ।" भाइयों के बीच में धर्मकार्य के विषय में परस्पर प्रेरणा होनी चाहिए ।
कहा है- " प्रमाद रूपी अग्नि से जलते हुए संसार रूपी घर में मोहनिद्रा से सोये हुए व्यक्ति को जो जगाता है, वह उसका परमबन्धु है ।"
भाइयों के परस्पर प्रेम के विषय में भरत के श्रद्वाणु भाइयों का दृष्टान्त समझना चाहिए । भरत का दूत आने पर वे सभी भाई एक साथ ऋषभदेव प्रभु को पूछने के लिए जाते हैं और वहीं पर प्रभु की प्रेरणा प्राप्त कर एक साथ दीक्षा ले लेते हैं। भाई के समान मित्र के साथ भी उचित व्यवहार करना चाहिए ।
5 स्त्री के साथ श्रौचित्य
5 प्रियवचन और मान देकर स्त्री को अपने श्रभिमुख करना चाहिए। पति का प्रियवचन अन्य अन्य प्रेमप्रकार और दान आदि से भी पति का प्रियवचन अधिक गौरव
संजीवनी विद्या है। प्रदान करता है ।