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श्राद्धविधि/२१०
मुहपत्ती पडिलेहन करनी चाहिए-फिर वांदणा देकर, जिस तप का संकल्प किया हो उसका विधिपूर्वक पच्चवखाण लेना चाहिए।
फिर 'इच्छामो अणुसटुिं' कहकर नीचे बैठकर तीन स्तुति पढ़नी चाहिए तत्पश्चात् मृदु स्वर से 'नमोत्थुणं' कहकर चैत्यवन्दन करना चाहिए।
के पक्खो प्रतिक्रमण की विधि : चतुर्दशी के दिन पक्खी प्रतिक्रमण करने का होता है, उसमें प्रथम 'देवसी प्रतिक्रमण सूत्र' तक विधि करने के बाद इस क्रम से करना चाहिए।
प्रथम मुहपत्ती पडिलेहन कर वांदणा देकर 'संबुद्धा खामणा' करना चाहिए, फिर अतिचारों की आलोचना कर वांदणा तथा 'प्रत्येक खामणा' कर वांदणा देकर 'पक्खीसूत्र' पढ़ना चाहिए।
फिर 'प्रतिक्रमण सूत्र' कहकर खड़े होकर कायोत्सर्ग करें। उसके बाद मुहपत्ती पडिलेहन कर वांदणा देकर अन्तिम खामणा करें और चार थोभ वन्दना करें।
उसके बाद पूर्वोक्त विधि अनुसार देवसिक वन्दनादि करें। श्रुतदेवता के बजाय भुवनदेवता का कायोत्सर्ग करें और स्तवन में अजितशान्ति कहें।
है चातुर्मासिक व सांवत्सरिक प्रतिक्रमण विधि चातुर्मासिक और सांवत्सरिक प्रतिक्रमण की विधि पक्खीप्रतिक्रमण के समान ही समझनी चाहिए। उसमें फर्क इतना ही है कि पक्खी के स्थान पर 'चउमासी' और 'संवत्सरी' का पाठ बोलना चाहिए तथा पक्खी के कायोत्सर्ग में बारह लोगस्स, चउमासी के कायोत्सर्ग में बीस लोगस्स और संवत्सरी के कायोत्सर्ग में चालीस लोगस्स और ऊपर एक नवकार का कायोत्सर्ग करना चाहिए। पक्खी, चउमासी और संवत्सरी में क्रमश: तीन, पाँच और सात साधुओं को 'संबुद्धाखामणा' आदि करना चाहिए।
हरिभद्रसूरि कृत प्रावश्यक वृत्ति में वंदन नियुक्ति की 'चत्तारि पडिक्कमणे' गाथा की व्याख्या करते समय 'संबुद्धा खामणा' के विषय में कहा है कि-देवसिक प्रतिक्रमण में जघन्य से तीन, पक्खी में पाँच और चउमासी व संवत्सरी में सात साधुओं को खामणा करना चाहिए। पाक्षिक सूत्रवृत्ति तथा प्रवचनसारोद्धार की वृत्ति में कही वृद्धसामाचारी में भी यही बात कही गयी है।
प्रतिक्रमण के अनुक्रम का विचार पूज्य श्री जयचन्द्रसूरि कृत ग्रन्थ से समझ लेना चाहिए ।
+ गुरु-सेवा है आशातना के त्यागपूर्वक तथा विधिपूर्वक मुनि भगवन्तों की तथा विशिष्ट धर्मिष्ठ सार्मिक की विश्रामणा (सेवा) करनी चाहिए। उनकी शारीरिक सुखसाता तथा संयम-यात्रा के बारे में कुशल-पृच्छा करनी चाहिए।