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* तृतीय प्रकाश *
पर्व कृत्य 5
पर्व दिनों में तथा विशेषकर आसो और चैत्र प्रमुख विशेष दिनों में ब्रह्मचर्य, अनारम्भ, तप विशेष और पौषध आदि करना चाहिए ॥। ११ ॥
धर्म की जो पुष्टि करता है, उसे पौषध कहते हैं । आगमोक्त अष्टमी, चतुर्दशी आदि पर्वतिथियों में श्रावक को व्रत पौषध आदि अवश्य करना चाहिए ।
आगम में कहा है - जिनशासन में सभी दूज आदि पर्वों में शुभ प्रवृत्ति करने की है और अष्टमी और चतुर्दशी आदि में अवश्य पौषध करना चाहिए ।
आदि शब्द से यदि शारीरिक प्रतिकूलता आदि पुष्ट आलम्बन से पौषध करना शक्य न हो तो दो बार प्रतिक्रमण, अनेक बार सामायिक तथा दिशा आदि के विशेष संक्षेप रूप देशावगासिक व्रत का अवश्य स्वीकार करना चाहिए ।
पर्व दिनों में ब्रह्मचर्य का पालन, आरम्भ - समारम्भ का त्याग तथा नित्य तप की अपेक्षा विशेष यथाशक्ति उपवास आदि तप करना चाहिए ।
आदि शब्द से स्नात्र पूजा, चैत्य - परिपाटी, सर्व साधुनों को वन्दन, सुपात्रदान तथा पूर्व में की गयी देव गुरु की पूजा व दान आदि से विशेष तद्-तद् धर्मानुष्ठान करना चाहिए। कहा है
यदि प्रतिदिन धर्मानुष्ठान की क्रियाएँ होती हों तो बहुत अच्छा है, यदि प्रतिदिन शक्य न हों तो पर्वदिनों में तो अवश्य करनी चाहिए ।
जिस प्रकार विजयादशमी, दीपावली, अक्षय तृतीया आदि लौकिक पर्वों में भोजन, वस्त्रपरिधान आदि में विशेष प्रयत्न किया जाता है, उसी प्रकार पर्वदिनों में धर्म-कर्म में भी विशेष यत्न करना चाहिए ।
अन्यदर्शनी भी एकादशी, अमावस्या आदि पर्वदिनों में कुछ आरम्भ का त्याग व उपवास आदि करते हैं तथा संक्रान्ति, ग्रहण आदि पर्वदिनों में अपनी सर्वशक्ति से महादान देते हैं, अतः श्रावक को भी सभी पर्व दिनों का यथाशक्ति अवश्य पालन करना चाहिए ।
5 पर्व दिन 5
हैं--दो अष्टमी, दो चतुर्दशी, एक पूर्णिमा और एक अमावस्या तथा प्रत्येक पक्ष में तीन पर्व ( तिथि) प्राते हैं । गणधर गौतम स्वामी ने कहा है कि दूज, पंचमी, अष्टमी, एकादशी तथा चतुर्दशी ये पाँच तिथियाँ शुभ तिथियाँ हैं ।
पर्वदिन इस प्रकार कहे गये छह पर्व प्रत्येक मास में आते हैं
ये
"दो प्रकार के धर्म की आराधना के लिए दूज की, पाँच ज्ञान की आराधना के लिए पंचमी