________________
श्राद्धविधि / ९८६
स्वामी तो अठारह देशों के मालिक हैं (अर्थात् मेरे दान में भी आपका ही प्रभाव है ) । इस बात को सुनते ही कुमारपाल अत्यन्त प्रसन्न हो गया और उसने उसे राजपुत्र का खिताब और पहले से द्विगुणी सम्पत्ति भेंट की । ग्रन्थकार ने कहा है
दान, गमन, मान, शयन, आसन, पान, भोजन तथा वचन आदि समय ( अवसर ) पर ही अत्यन्त आनन्ददायी बनते हैं । इसी कारण सर्वत्र 'समयज्ञता' औचित्य का बीज है । “एक ओर चित्य पालन एक ही गुरण हो और दूसरी ओर करोड़ों गुण हों, फिर प्रौचित्य से रहित होने के कारण वे सब विषरूप बन जाते हैं ।"
सर्व अनौचित्य का त्याग करना चाहिए। जिस कार्य को करने से मूर्ख कहलाना पड़े, उसे त्यागना चाहिए । लौकिक शास्त्र में मूर्ख के अनेक लक्षण बतलाये हैं, जो उपयोगी होने से यहाँ बतलाते हैं ।
"हे राजन् ! सौ मूर्खों के स्वरूप को जानकर उनका त्याग करो, जिससे तुम दोषहीन मणि की तरह दुनिया में शोभा प्राप्त करोगे ।"
* मूर्ख के 100 लक्षण
1. जो शक्ति होने पर भी परिश्रम न करे ।
2.
बुद्धिमानों की सभा में अपनी प्रशंसा करे ।
3.
वेश्या के वचन पर विश्वास करे ।
4. दंभ के दिखावे में विश्वास रखे ।
5. जुआ आदि से धनप्राप्ति की आशा करे ।
6. खेती आदि की आय में संशय रखे ।
7. बुद्धि नहीं होने पर भी बड़े कार्य की इच्छा करे ।
8. वणिक् होकर भी एकान्तवास की रुचि रखे ।
9. ॠण करके स्थावर सम्पत्ति खरीदे ।
10. स्वयं वृद्ध होने पर भी कन्या के साथ शादी करे ।
11. नहीं सुने हुए ग्रन्थ पर व्याख्या करे ।
12. खुली बात को छिपाने का प्रयास करे । 13. धनवान होकर झगड़े करे ।
14. समर्थ शत्रु का भय न रखे । 15. पहले धन देकर फिर पश्चात्ताप करे । 16. कवि के द्वारा बलपूर्वक पाठ कराये । 17. बिना अवसर बोलने में चतुराई बताये । 18. बोलने का अवसर श्राने पर मौन रहे ।