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श्रावक जीवन-दर्शम/१८७
19. लाभ के प्रसंग में झगड़ा करे। 20. भोजन के समय गुस्सा करे । 21. बड़े लाभ की आशा से अपना धन बिखेरे। 22. लोकव्यवहार में संस्कृत के क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग करे । 23. पुत्र के अधीन धन को पाने के लिए दीनता करे । 24. स्त्रीपक्ष (श्वसुर पक्ष) वालों से धन की याचना करे । 25. स्त्री से झगड़ा हो जाने पर दूसरी स्त्री से विवाह करे। 26. पुत्र पर क्रोध आने से उसे मार डाले। 27. कामी पुरुषों के साथ स्पर्धा कर धन उड़ावे। 28. याचकों से अपनी प्रशंसा सुनकर गर्व करे । 29. अपनी बुद्धि के अभिमान से दूसरों के हितवचन न सुने । 30. अपने कुल के अभिमान से दूसरों की सेवा न करे। 31. दुर्लभ धन देकर काम का सेवन करे। 32. चंगी देकर उन्मार्ग पर जाये। 33. लोभी राजा के पास लाभ की आशा रखे । 34. दुष्ट शासक से न्याय की अपेक्षा रखे । 35. लेखक जाति (क्षत्रियपिता और शूद्रमाता की संतान) के साथ स्नेह से आशा रखे । 36. क्रूर मंत्री से भी भय न रखे। 37. कृतघ्न से प्रतिफल की इच्छा रखे । 38. नीरस व्यक्ति को गुण बतलाये । 39. स्वस्थ होने पर भी वैद्य से दवा ले। 40. रोगी होकर पथ्य-पालन से दूर रहे । 41. लोभ से स्वजन का त्याग करे। 42. मित्र को द्वेष हो, ऐसी वाणी बोले । 43. लाभ के प्रसंग में आलसी रहे । 44. समृद्धि होने पर भी झगड़ा करे । 45. ज्योतिषी के वचन पर विश्वास रख राज्य की इच्छा रखे। .46. मूर्ख के साथ मंत्रणा करने में आदर रखे। . 47. कमजोर को सताने में शूरवीर बने। 48. जिसके दोष दिखाई दिये हों ऐसी स्त्री से भी राग करे। 49. गुणों के अभ्यास में रुचि न रखे।