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श्राद्धविधि/१८८ .
पार करे।
50. दूसरों की कमाई का व्यय करे। 51. मौन रहकर राजा का अभिनय करे । 52. लोक में राजा आदि की निन्दा करे । 53. दुःख आने पर दीनता रखे। 54. सुख मिलने पर दुर्गति को भूल जाय। 55. मूल्यहीन वस्तु की रक्षा के लिए अधिक धन का व्यय करे। 56. परीक्षा के लिए विषभक्षण करे। 57. धातुविज्ञान में धन खर्च करे। 58. क्षयरोग होने पर भी रसायन खाये। 59. अपने मन से अहंकारी होकर दूसरे को न नमे। 60. क्रोध से प्रात्महत्या के लिए प्रयास करे। 61. . प्रतिदिन निष्कारण जहां-तहाँ भटके। 62. बाण से प्रहत होने पर भी युद्ध को देखे । 63. बलवान के साथ विरोध कर अपना नुकसान करे । 64. अल्प धन में बड़ा प्राडम्बर रखे। 65. अपने आपको पंडित मानकर वाचालता प्रगट करे। 66. अपने आपको शूरवीर समझकर किसी से भय न रखे। 67. अत्यधिक प्रशंसा कर किसी को दुःखी करे । 68. हँसी-मजाक में किसी को मर्मभेदी वचन बोले । 69. दरिद्री को अपना धन सौंपे । 70. शंकावाले कार्यों में प्रथम से ही खर्च करे। 71. अपने व्यय का हिसाब रखने में कंटाला लावे । 72. भाग्य पर भरोसा रखकर पुरुषार्थ न करे। 73. दरिद्र होने पर भी फिजूल बातों में समय नष्ट करे। 74. उत्तेजना के कारण भोजन विसरा दे। 75. गुणहीन होने पर भी अपने कुल की प्रशंसा करे। 76.. कठोर स्वर होने पर भी गीत गाये। 77. पत्नी के भय से याचक को दान न दे । 78: द्रव्य होने पर भी कृपणता से बद हालत में फिरे । 79. व्यक्त दोष वाले की प्रशंसा करे। 80. सभा के बीच में ही उठकर चला जाय।