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श्रावक जीवन-दर्शन/१६१
केशसज्जा, दर्पण में मुखदर्शन, दंतमंजन और देव की पूजा-ये कार्य दोपहर के पहले ही कर लेने चाहिए। अपने आवास से दूर जाकर ही मूत्र का त्याग करें और पाद-प्रक्षालन व उच्छिष्ट भोजन का त्याग भी दूर ही करें। जो व्यक्ति मिट्टी के डले को तोड़ता है, तृण का छेद करता है, दाँत से नाखून तोड़ता है उसको एवं लघुनीति-बड़ीनीति से बिगड़े हुए पुरुष को बड़ा आयुष्य प्राप्त नहीं होता है । फटे हुए प्रासन पर न बैठे। टूटे हुए कांस्य के बर्तन का त्याग करें। बाल खुले रखकर भोजन न करें और नग्न होकर स्नान न करें। नग्न होकर न सोयें। जूठे हाथ-मुह से बैठे न रहें। मस्तक के आश्रित सभी प्राण होने से जूठन वाला हाथ मस्तक पर न लगायें।
किसी के बाल न पकड़ें। मस्तक पर प्रहार न करें। पुत्र और शिष्य को छोड़कर शिक्षा के लिए किसी का ताड़न न करें। दोनों हाथों से मस्तक न खुजलावें। बिना कारण बारम्बार स्नान न करें। ग्रहण के बिना रात्रि में स्नान अच्छा नहीं है। भोजन के बाद स्नान न करें और न ही अति गहरे जलाशय में स्नान करें।
____ गुरु का दोष न बोलें। कुपित हुए गुरु को प्रसन्न करें। दूसरों के द्वारा की जाती हुई गुरु की निन्दा को न सुनें। हे भारत ! गुरु, सती-स्त्री, धर्मी व तपस्वी की मजाक में भी निन्दा न करें। किसी की थोडी (छोटी) वस्तु की भी चोरी न करें। थोडा भी अप्रिय न बोलें। प्रिय व सत्य बोलें। दूसरों के दोषों की उदीरणा न करें।
पतित (चरित्रहीन) व्यक्तियों के साथ बातचीत न करें। उनके हाथ से भोजन न लें एवं उनके साथ काम न करें। लोक में निंद्य, पतित, बहुतों के दुश्मन और शठ व्यक्ति के साथ दोस्ती न करें और अकेले यात्रा न करें।
दुष्ट वाहन में न बैठे। किनारे की छाया का आश्रय न करें। वेग वाले प्रवाह में अग्रसर होकर प्रवेश नहीं करना चाहिए। सुलगते हुए घर में प्रवेश न करें। पर्वत के शिखर पर न चढ़ें। मुह ढंके बिना जंभाई, खाँसी व छींक न कर । चलते समय ऊपर, इधर-उधर व दूर न देखें, बल्कि गाड़ी के जुए प्रमाण भूमि को देखते हुए चलें । जोर से न हँसे । अधोवायु न छोड़ें। दांतों से नाखून न काटें व पैर पर पैर नहीं रखें।
दाढ़ी व मूछ के बाल न चबावें। होठों को न चबावें । कोई जूठी चीज न खायें और किसी के घर आदि का मुख्य द्वार खुला न हो तो अन्य मार्ग से प्रवेश न करें। गर्मी व वर्षा में छतरी लेकर और रात्रि में वन में लकड़ी लेकर जायें। जूते, वस्त्र और माला अन्य किसी ने पहनी हो तो उसे न पहनें।
स्त्रियों के साथ ईर्ष्या न करें । अपनी स्त्री का प्रयत्नपूर्वक रक्षण करें। ईर्ष्या करना बेकार है अतः उसका त्याग करें। हे राजन् ! रात्रि में जल भरना, छानना एवं दही के साथ सक्त खाना आदि क्रियायें न करें तथा रात्रि में भोजन नहीं करना चाहिए। अधिक देर तक खड़े न रहें, उत्कटासन से न बैठे। प्राज्ञ पुरुष आसन को पैर से खींचकर उस पर न बैठे। .
एकदम प्रातः काल में, एकदम सायंकाल में, मध्याह्न के समय तथा अज्ञात व्यक्तियों के साथ अकेले अथवा बहुतों के साथ भी नहीं जाना चाहिए। हे राजन् ! बुद्धिमान पुरुषों को मलिन दर्पण