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बाढविधि/१७०
रबारिन जब सिर पर छाछ उठाकर ले जा रही थी तब एक चील के मुह में रहे सर्प के मुख से जहर उस छाछ में गिर गया था। उस छाछ को पीने से वह संन्यासी मर गया।
इस पर वह ब्राह्मणी खुश होकर बोली-"अहो ! यह कैसा धर्मी है ?"
उसी समय आकाश में रही 'हत्या' ने सोचा, "मैं किसको लगू ? दाता तो शुद्ध है, साँप भी अज्ञानी और पराधीन है, साँप चील का भोजन है, आभीरी को कुछ भी पता नहीं था" इस प्रकार
चार कर वह ब्राह्मणी को चोंट गई, जिसके फलस्वरूप वह उसी समय काली, कूबड़ी और कोढ़ रोग से ग्रस्त हो गयी। झूठा आक्षेप लगाने के फल का यह लौकिक दृष्टान्त है।
* विद्यमान दोष भी न कहें * एक राजा की राजसभा में एक विदेशी तीन पुतलियाँ लेकर पाया। पण्डितों ने उनकी परीक्षा कर सही मूल्यांकन किया।
पहली पुतली के कान में डाला धागा मुह में से बाहर आ गया। वाचालता का प्रतीक होने से उसका मूल्य फूटी कौड़ी का किया।
.. दूसरी पुतली के कान में डाला धागा दूसरे कान से बाहर निकला। एक कान से सुन दूसरे कान से निकाल देने वाली उस पुतली का मूल्य एक लाख सोना मोहर किया और तीसरे के कान में डाला धागा गले में चला गया। सुनी हुई बात को हृदय में रखने वाली उस पुतली कां मूल्य ही नहीं आंका जा सकता यानी वह सर्वश्रेष्ठ है।
* अन्य लोकविरुद्ध कार्य भी न करें * • सरल व्यक्ति की मजाक न करें। • गुणवानों की ईर्ष्या न करें। • उपकारी के उपकार को न भूलें। कृतघ्न न बनें। • बहुत लोगों के विरोधी व्यक्ति का संग न करें। • लोकमान्य व्यक्ति का अपमान न करें। • सदाचारी पुरुषों को आपत्ति में देखकर खुश न हों। • शक्ति हो तो सत्पुरुषों की आपत्ति को दूर करें। • देश आदि के उचित आचारों का उल्लंघन न करें। • सम्पत्ति के अनुसार वेष पहनें-अतिउद्भट और अतिमलिन वस्त्र न पहनें। लोकविरुद्ध कार्य करने से इस लोक में भी अपयश होता है।
वाचकशिरोमरिण उमास्वातिजी ने कहा है-"सभी धर्मी प्रात्माओं के लिए लोक ही वास्तव में आधार है, अतः लोकविरुद्ध और धर्मविरुद्ध कार्यों का त्याग करना चाहिए।"