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श्राद्धविधि / १४८
"झूठी साक्षी देने वाला, दीर्घकाल तक रोष करने वाला, विश्वासघात करने वाला और कृतघ्न ये चार, कर्म चांडाल हैं और पाँचवाँ जाति-चांडाल है ।"
5 विश्वासघात पर विसेमिरा का दृष्टान्त 5
विशालानगरी में नन्द नाम का राजा था। उसके विजयपाल नाम का पुत्र और बहुश्रुत नाम का मंत्री था। राजा की भानुमती नाम की रानी थी। राजा उसमें विशेष आसक्त था । राजसभा में भी वह भानुमती को अपने पास बिठाता था । यह देख एक बार मंत्री ने राजा को कहा - "जिस राजा का वैद्य, गुरु और मंत्री केवल मधुरभाषी होता है, उस राजा के शरीर, धर्म और कोष की शीघ्र हानि होती है । "....यह बात कहकर उसने कहा- "हे राजन् ! राजसभा क्योंकि कहा भी है कि राजा, अग्नि, गुरु और स्त्री और अत्यन्त दूर हो तो अपना फल नहीं देते हैं, इस कारण रानी को पास में बिठाने के बजाय
रानी को पास में बिठाना उचित नहीं है । अत्यन्त पास में हो तो वे विनाश के लिए होते हैं अतः मध्यम भाव से ही उनकी सेवा करनी चाहिए उसका चित्र बनवा दो ।"
।
राजा ने रानी का चित्र बनवा दिया और उसे अपने गुरु शारदानन्द को बताया ।
अपनी विद्वत्ता बताने के लिए उसने कहा - "रानी की बायीं जंघा पर तिल का निशान है, वह इसमें नहीं बतलाया है ।"
राजा के मन में रानी के शील के प्रति सन्देह पैदा हुआ और उसने तत्काल शारदानन्द को मारने के लिए मंत्री को आदेश कर दिया ।
मंत्री ने सोचा -- "बुद्धिमान् पुरुष को शुभ अथवा अशुभ कार्य करने के पूर्व उसके परिणाम पर अच्छी तरह से विचार करना चाहिए, क्योंकि किसी कार्य को जल्दबाजी में करने पर उसका परिणाम जीवनपर्यन्त हृदय को जलाने वाले शल्य की तरह दुःखदायी होता है ।"
"कोई भी कार्य जल्दबाजी में नहीं करना चाहिए । अविवेक ही सर्व प्रपत्तियों का स्थान है । विचारपूर्वक कार्य करने वाले को गुणों में लुब्ध सभी सम्पत्तियाँ स्वयं ही वरती हैं ।' इस प्रकार नीतिशास्त्र में कही बात को याद कर मंत्री ने शारदानन्द को अपने घर में ही छुपा दिया ।
एक बार राजपुत्र शिकार के लिए सुअर का पीछा करता हुआ बहुत दूर चला गया ।
संध्या समय सरोवर का पानी पीकर व्याघ्र के भय से राजपुत्र किसी वृक्ष पर चढ़ गया । वृक्ष पर व्यन्तराधिष्ठित बन्दर था । सर्वप्रथम वह राजपुत्र बन्दर की गोद में सो गया । तत्पश्चात् राजपुत्र की गोद में बन्दर सो गया । उसी समय भूख से पीड़ित एक व्याघ्र उस वृक्ष के नीचे आया । व्याघ्र के कहने पर उस राजपुत्र ने उस बन्दर को नीचे फेंक दिया । वह बन्दर व्याघ्र के
'मुख में गिरा और व्याघ्र के हँसने पर वह बाहर निकल गया और रुदन करने लगा । व्याघ्र के पूछने पर बोला - " हे व्याघ्र ! जो अपनी जाति को छोड़कर अन्य जाति में श्रासक्त बने हैं, उन जड़ लोकों की क्या गति होगी ? यह विचार कर मैं रो रहा हूँ ।"