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श्रावक जीवन-दर्शन/४३
के कारण स्त्रियों को प्रभुपूजा नहीं करनी चाहिए। क्योंकि ऐसा करने से भयंकर आशातना आदि होती हैं। पूजा-सम्बन्धी वस्त्र
पूर्वोक्त रीति से स्नान करने के बाद पवित्र सुकोमल गंधकाषायिक आदि वस्त्र से शरीर को पोंछकर भीगे वस्त्र को युक्तिपूर्वक उतार कर और शुद्ध वस्त्र को पहिन कर, गीले पैरों से भूमि का स्पर्श किये बिना पवित्र स्थान में आकर उत्तरदिशा सम्मुख खड़े रहकर मनोहर, नये, बिना फटे हुए और बिना जोड़े हुए दो चौड़े सफेद वस्त्र पहिनने चाहिए।
कहा भी है-"मर्यादित जल प्रादि से शरीर को शुद्ध कर धूप से सुगन्धित, धोये हुए दो शुद्ध श्वेत वस्त्र पहिनने चाहिए।" लोक में भी कहा गया है-“हे राजन् ! देवपूजा में साँधा हुआ, जला हुआ, फटा हुआ और दूसरे का वस्त्र नहीं पहिनना चाहिए।" एक बार भी जिस वस्त्र को पहिनकर मल-मूत्र तथा मैथुनसेवन किया हो, उस वस्त्र का प्रभुपूजा में त्याग करना चाहिए। - एक वस्त्र पहिनकर भोजन और देव-पूजा नहीं करनी चाहिए तथा स्त्री को कंचुक पहिने बिना पूजा नहीं करनी चाहिए। इस प्रकार पुरुष को दो और स्त्री को तीन वस्त्र के बिना प्रभुपूजा आदि नहीं करनी चाहिए। .
देवपूजा में धोये हुए वस्त्र, मुख्यतया सफेद ऐसे अतिविशिष्ट क्षीरोदकादि का ही उपयोग करना चाहिए। निशीथ आदि में उदायन राजा की रानी प्रभावती आदि के धोये हुए सफेद वस्त्र की ही बात आती है।
दिनकृत्य में भी कहा है-"सफेद वस्त्र पहिनकर प्रभुपूजा करनी चाहिए। क्षीरोदक आदि वस्त्र पहिनने में असमर्थ व्यक्ति को महीन बढ़िया सूती धोती आदि का उपयोग करना चाहिए।"
__ पूजा षोडशक में कहा है-“सफेद और शुभ वस्त्र से पूजा करनी चाहिए। शुभ से तात्पर्य सफेद के अलावा अन्य लाल-पीले वर्ण वाले रेशमी वस्त्र आदि।"
"एक शाटिक उत्तरासंग करना चाहिए" इस पागम प्रमाण के कारण उत्तरासंग प्रखण्ड ही होना चाहिए, परन्तु जुड़ा हुमा या साँधा हुआ नहीं होना चाहिए। "भोजन आदि करने पर भी रेशमी वस्त्र सदैव पवित्र ही होते हैं" इस लोकोक्ति को प्रभुपूजा में स्वीकार नहीं करना चाहिए।
पूजा के रेशमी वस्त्रों को भी भोजन, मल-मूत्र और अशुचि स्पर्श आदि से दूर ही रखना चाहिए।
पूजा में उपयोग के बाद पुनःपुनः उन वस्त्रों को धोना चाहिए और धूप से सुवासित करना चाहिए। उनका उपयोग अल्पकाल के लिए ही करना चाहिए। पूजा के वस्त्र से पसीने तथा श्लेष्म आदि को साफ नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे अपवित्रता होती है।
बाल, वृद्ध, स्त्री आदि के तथा स्वयं के उपयोग में लिये हुए अन्य वस्त्रों से पूजा के वस्त्र दूर रखने चाहिए।