________________
श्रावक जीवन-दर्शन /६७ "सुरसुन्दरियों के द्वारा प्रापके आगे भ्रमरण किया जाता मंगलदीप मेरुपर्वत की प्रदक्षिणा देते हुए सूर्य की तरह शोभता है ।"
इस प्रकार पाठपूर्वक मंगलदीप उतार कर प्रभु के चरणों के सामने रखना चाहिए । मंगलदीप रखने के बाद प्रारती बुझाई जाय तो भी कोई दोष नहीं है। आरती व मंगलदीप मुख्यतया घी, गुड़ और कपूर के द्वारा करने से ज्यादा फल मिलता है । लौकिक शास्त्र में भी कहा है"देवाधिदेव को कपूर से दीपक करने पर अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है और कुल का भी उद्धार होता है ।"
“मुक्तालंकार....” इत्यादि गाथाएँ हरिभद्र सूरि कृत होने की सम्भावना है; क्योंकि उनके द्वारा विरचित समरादित्य चरित्र ग्रन्थ की आदि में 'उवरणेउ मंगलं वो' इत्यादि पाठ है ।
ये सभी गाथाएँ तपागच्छ की परम्परा में प्रसिद्ध होने से यहाँ नहीं लिखी गयी हैं ।
सामाचारी के भेद से स्नात्र आदि में विविध विधि के दिखाई देने पर भी व्यामोह नहीं करना चाहिए, क्योंकि अरिहन्त भक्ति के फल रूप मोक्ष ही सब का साध्य है । गणधर आदि की सामाचारी में भी बहुत से भेद होते हैं । अतः जो-जो कार्य धर्म से अविरुद्ध है और अरिहन्त की भक्ति का पोषक है, वह किसी लिए भी असम्मत नहीं है । इस प्रकार सभी धर्मकृत्यों में समझना चाहिए ।
जिनपूजा के अधिकार में आरती, मंगलदीप, लवण- उतारना आदि मुख्य क्रियाएँ सभी गच्छों, सम्प्रदायों व पर-दर्शन में भी भगवान की दाहिनी ओर से ही की जाती हैं ।
श्री जिनप्रभसूरिकृत पूजाविधि में इस प्रकार कहा गया है- "पादलिप्तसूरि आदि पूर्वपुरुषों द्वारा लवण आरती आदि संभार (बायीं ओर से ) अनुज्ञात होने पर भी वर्तमान में दाहिनी ओर से किया जाता है ।"
स्नात्र महोत्सव में हर प्रकार से विस्तृत पूजा-प्रभावना की जाती है, इसलिए परलोक में उसका विशिष्ट फल स्पष्ट है । जिनेश्वर भगवान के जन्म समय चौंसठ इन्द्रों ने प्रभु का जन्ममहोत्सव किया था, यहाँ उसी का अनुकरण ( करने का श्रानन्द) है ।
* प्रतिमा के विविध भेद *
प्रतिमाएँ अनेक प्रकार की होती हैं । उनके भेद पूजाविधि सम्यक्त्व - प्रकरण में कहे गये हैं ।
कुछ आचार्यों के मत से माता, पिता, पितामह आदि के द्वारा बनवायी गयी प्रतिमा, कुछ आचार्यों के मत से स्वयं के द्वारा बनवायी गयी प्रतिमा तथा कुछ आचार्यों के मत से विधिपूर्वक करायी (भरायी) हुई प्रतिमा की पूजा करनी चाहिए ।
सच तो यह है कि प्रभु प्रतिमा भराने में व्यक्तिविशेष का महत्त्व नहीं होने से ममत्व व आग्रह छोड़कर सामान्यतया सभी प्रतिमाओं की पूजा करनी चाहिए; क्योंकि सभी प्रतिमानों में