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श्राद्धविधि / १३०
अपने खेत में न होने वाली फसल को नहीं बोता है और मार्ग की भूमि को छोड़ देता है, वह हर तरह से वृद्धि पाता है ।
"धन के लिए यदि पशुपालन करना पड़े तो दया भाव का त्याग न करे और पशुओं के कार्य में स्वयं जागृत रहकर चर्मच्छेद आदि का त्याग कराये ।"
(5) शिल्प सौ प्रकार का है। कहा है- कुम्भकार, लुहार, चित्रकार, जुलाहा और नापित: ( हज्जाम ) के मुख्य पाँच शिल्प हैं, इन सब के बीस-बीस भेद होते हैं । प्रभेद विवक्षा से तो इससे भी अधिक भेद हो जाते हैं । आचार्य के उपदेश से जन्य शिल्प कहलाता है और वे ऋषभदेव स्वामी के उपदेश से प्रवृत्त हुए हैं।
आचार्य के उपदेश बिना, परम्परा से प्रवृत्त कृषि व्यापार आदि कर्म कहलाते हैं । श्रार्षवारणी है - "आचार्य के उपदेश बिना जो होता है वह कर्म और आचार्य के उपदेश से जो होता है वह शिल्प कहलाता है । कृषि, वाणिज्य आदि कर्म और कुम्भकार, लुहार आदि के कार्य शिल्प गिने जाते हैं ।
यहाँ कृषि, व्यापार और पशुपालन साक्षात् कहे गये हैं। शेष सभी कार्यों का समावेश शिल्पादि में होता है । स्त्री-पुरुष की कुछ कलाओं का समावेश विद्या में और कुछ का समावेश शिल्प में होता है । सामान्यतः कर्म के चार भेद हैं
"बुद्धि से कर्म करने वाले उत्तम, हाथ से कर्म करने वाले मध्यम, पैर से कर्म करने वाले श्रधम और मस्तक पर भार उठाने वाले अधमाधम समझने चाहिए ।"
5 बुद्धिकर्म पर दृष्टान्त
चम्पानगरी में धन सेठ का मदन नाम का पुत्र था। एक बार वह बुद्धि बेचने वाले की दुकान पर गया और 500 द्रम्म देकर 'दो लड़ते हों तो वहाँ नहीं ठहरना' - बुद्धि खरीद कर अपने
घर ना गया ।
घर आने पर मित्रों ने उसकी मजाक बनायी और पिता ने भी उसे फटकारा। वह अपनी रकम लेने के लिए पुनः उस दुकान पर गया तब व्यापारी ने कहा - "दो के झगड़े में वहीं खड़े रहने का वचन दो तो मैं तुम्हें तुम्हारी रकम लौटा दूँ ।" मदन ने उसकी बात स्वीकार कर ली । व्यापारी ने उसकी रकम लौटा दी
एक बार राजा के दो सैनिक परस्पर लड़ रहे थे। उस समय मदन उन दोनों ने मदन को साक्षी कर दिया । न्याय के लिए वे राजा के पास गये । में मदन को बुलवाया। उन दोनों सैनिकों ने अलग-अलग रूप से धन सेठ पुत्र ने मेरे पक्ष में साक्षी नहीं दी तो तुम्हारी हालत खराब हो जायेगी। पिता धन अत्यन्त व्याकुल हो गया । वह बुद्धि बेचने वाले व्यापारी के यहाँ गया और अपने पुत्र की रक्षा के लिए करोड़ द्रम्म देकर एक बुद्धि खरीद लाया । व्यापारी ने कहा - "तुम अपने पुत्र को पागल बना दो अर्थात् राजदरबार में वह पागल की तरह व्यवहार करे ।"
पास में खड़ा रहा। राजा ने साक्षी रूप धमकी दी कि तुम्हारे इस घटना से मदन का
इस प्रकार करने से मदन बच गया ।