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श्राविधि/७०
"औषध के दुष्प्रयोग से भयंकर परिणाम आ जाता है, उसी प्रकार धर्मानुष्ठान भी विपरीत प्रकार से करने से भयंकर अनर्थ होता है।" अविधिपूर्वक किये गये चैत्यवन्दन आदि के लिए भागम में प्रायश्चित्त बताया है। महानिशीथ सूत्र के ७ वें अध्ययन में कहा गया है
__ "प्रविधि से चैत्यवन्दन करने से दूसरों को प्रश्रद्धा उत्पन्न होती है, अतः प्रविधि से चैत्यवन्दन करने वाले को प्रायश्चित्त देना चाहिए।"
- देवता, विद्या और मंत्र की भी विधिपूर्वक आराधना करने से ही उसका फल मिलता है, विपरीत रूप से करने से अनर्थ की प्राप्ति होती है।
* चित्रकार का दृष्टान्त * अयोध्यानगरी में सुरप्रिय यक्ष था। प्रतिवर्ष उस नगर में एक मेला लगता था। मेले के पूर्व चित्रकार उस यक्ष की प्रतिमा को चित्रित करता था और उसी समय चित्रकार की मृत्यु हो जाती थी। यदि चित्रकार चित्रकर्म न करे तो वह यक्ष नगरजनों को खत्म करता था। इस मृत्युभय को जानकर सभी चित्रकार नगर छोड़कर भागने लगे."परन्तु राजा ने उन सबको रोका और निर्णय लिया गया कि सभी के नाम की चिट्ठी घड़े में डाल दी जाय, प्रतिवर्ष जिसका नाम निकलेगा, वह यक्ष की प्रतिमा को चित्रित करेगा।
क्रमशः एक बार एक वृद्ध स्त्री के पुत्र की बारी आई। एकाकी पुत्र होने से वह रोने लगी। उसी समय कोशाम्बी से आकर कुछ दिन वहाँ रहे चित्रकार के पुत्र ने सोचा, “सचमुच ये अविधि से चित्र बनाते होंगे-उसी का यह फल लगता है।" इस प्रकार विचार कर दृढ़तापूर्वक उसने कहा"इस बार मैं चित्रित करूंगा।"
इस प्रकार निश्चय कर उसने छ? का तप किया। शरीर, वस्त्र, रंग व कूची आदि की शुद्धि की। तत्पश्चात् पाठ पुट से मुखकोश बाँधकर विधिपूर्वक उसने यक्ष की प्रतिमा को चित्रित किया। तत्पश्चात् यक्ष के पैरों में गिरकर उसने क्षमायाचना की।
उसकी विधि-पालन की यह तत्परता देखकर यक्ष प्रसन्न हो गया। उसे उसने वरदान दिया। उस चित्रकार ने कहा-"आज से किसी की हत्या न हो।" यक्ष ने उसकी प्रार्थना स्वीकार करली। तत्पश्चात् पुनः वरदान देते हुए यक्ष ने कहा, "किसी भी व्यक्ति के एक अंश को देखकर तुम उसका सम्पूर्ण चित्र बना सकोगे।" चित्रकार खुश हो गया।
एक बार कोशाम्बी राजा की सभा में गये उस चित्रकार ने जाल में से मृगावती रानी का अंगूठा देखा। बस, अंगूठे को देखकर उसने रानी का सम्पूर्ण हूबहू चित्र बना दिया।
राजा ने उस चित्र को देखा। रानी की जंघा पर रहे तिल को उस चित्र में देखकर राजा के मन में सन्देह पैदा हुआ। तत्काल राजा ने उसे फांसी की सजा सुना दी।
अन्य चित्रकारों ने राजा को यक्ष के वरदान की बात कही। परीक्षा के लिए एक कुब्जा दासी का मुख उसे बताया गया। उसी समय उस चित्रकार ने उस कुब्जा दासी का सम्पूर्ण चित्र यथावत् बना दिया। फिर भी कोपायमान हुए राजा ने उसका दायाँ अँगूठा कटवा दिया ।