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श्रावक जीवन-दर्शन/११ ज्ञानी की निन्दा करने से, विरोध करने से, उपघात करने से तथा उत्सूत्र भाषण करने से ज्ञान की उत्कृष्ट पाशातना होती है। देव पाशातना
(1) वासक्षेप आदि की डिब्बी प्रभु से टकराने से अथवा श्वास, वस्त्र का छेड़ा प्रभु को स्पर्श होने से जघन्य प्राशातना होती है।
(2) बिना धोये हुए वस्त्र से प्रभु-पूजा करने से, प्रभु-प्रतिमा को भूमि पर गिराने से मध्यम प्राशातना होती है।
(3) प्रभु-प्रतिमा को पैर लगाना, प्रभु-प्रतिमा पर श्लेष्म, थूक का उड़ना, अपने हाथ आदि से प्रतिमा का टूटना, प्रतिमा की चोरी करना-कराना, अथवा प्रभु की, प्रभु-प्रतिमा की निन्दा करना आदि उत्कृष्ट पाशातना है।
अन्य रीति से जिनमन्दिर की जघन्य से 10 मध्यम से 40 और उत्कृष्ट से 84 पाशातनाए हैं, उनका त्याग करना चाहिए
* जिनमन्दिर की जघन्य दस पाशातनाएं * (1) मन्दिर में पान खाना।
(2) मन्दिर में पानी पीना। (3) मन्दिर में भोजन करना।
(4) बूट-चप्पल पहिनकर मन्दिर में जाना। (5) मन्दिर में स्त्री का सम्भोग करना। (6) मन्दिर में सोना। (7) मन्दिर में थूकना।
(8) मन्दिर में पेशाब करना। (9) मन्दिर में बड़ी नीति करना। (10) मन्दिर में जुआ खेलना।
* मन्दिर सम्बन्धी मध्यम चालीस प्राशातनाएं * (1) मन्दिर में पेशाब करना।
(2) मन्दिर में बड़ी नीति करना । मन्दिर में बूट पहिनकर जाना। (4) मन्दिर में पानी पीना। मन्दिर में भोजन करना।
(6) मन्दिर में सोना। मन्दिर में स्त्री-सम्भोग करना। (8) मन्दिर में तंबोल (पान-सुपारी) खाना। (9) मन्दिर में थूकना।।
(10) मन्दिर में जुमा खेलना । (11) मन्दिर में मस्तक में से जू आदि को (12) मन्दिर में विकथा करना।
निकालना। (13) मन्दिर में पलाठी लगाकर बैठना। (14) मन्दिर में अलग-अलग रीति से पैर लम्बे
कर बैठना।
यहाँ पर मूल में 'पल्हत्यीकरणं' शब्द है । इसका अर्थ वीरासन होता है । वसिष्ठ द्वारा दी गई परिभाषाएकं पादमर्थकस्मिन् विन्यस्योरी तु संस्थितम् इतरस्मिस्तथैवोरु वीरासनमुदाहृतम्। यानी एक पर जंघा पर एवं दूसरे पैर पर जंघा रखने से वीरासन होता है।