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श्रावक जीवन-दर्शन/११५ शीतलाचार्य को वन्दन के लिये आये हुए उनके चार भानजे सूर्यास्त हो जाने से नगर के बाहर ही रुक गये और उन्हें रात्रि में ही केवलज्ञान हो गया।
शीतलाचार्य ने दूसरे दिन वहाँ पाकर अपने चार भानजों को पहले तो क्रोध से द्रव्य-वन्दना की परन्तु बाद में वास्तविक स्थिति का पता चलने पर उन्होंने भाव से वन्दन किया। जिसके फलस्वरूप.उन्हें भी केवलज्ञान पैदा हो गया।
ॐ गुरु-वन्दन के प्रकार और उसकी विधि के गुरु वन्दन तीन प्रकार का है। भाष्य में कहा है। "गुरु वन्दन तीन प्रकार का है—फिट्टा वन्दन, थोभ वन्दन और द्वादशावर्त वन्दन ।"
केवल मस्तक झुकाना आदि फिट्टावन्दन कहलाता है। पंचांग प्रणिपात नमस्कारपूर्वक दो खमासमणे देकर जो वन्दन करते हैं, उसे थोभ वंदन कहते हैं और दो वांदणों से जो वन्दन किया जाता है, उसे द्वादशावर्त वन्दन कहते हैं। फिट्टा वन्दन परस्पर चतुर्विध संघ को किया जाता है। थोभवन्दन चारित्रात्मा को किया जाता है तथा द्वादशावर्त वन्दन तो आचार्य आदि पदस्थों को किया जाता है। जिसने प्रतिक्रमण नहीं किया हो उसे विधिपूर्वक वन्दन करना चाहिए।
9 भाष्य को प्रातःकालीन वन्दन-विधि ॥ सर्वप्रथम 'इरियावही' करके 'कुसुमिण-दुसुमिण' (कुस्वप्न-दुःस्वप्न) का एक सौ श्वासोच्छ वास प्रमाण कायोत्सर्ग करना चाहिए। कुस्वप्न देखा हो तो एक सौ आठ श्वासोच्छ्वास प्रमाण कायोत्सर्ग करें। उसके बाद आदेश मांगकर चैत्यवन्दन कर मुहपत्ती पडिलेहना करनी चाहिए।
तत्पश्चात् दो वांदणा देकर 'राइ अंगालोउं' इत्यादि कहकर पुनः दो वांदणा दें। उसके बाद 'अब्भुट्टियो' खमावे, फिर दो वांदणा देकर पच्चक्खाण करे। उसके बाद 'भगवानह' इत्यादि कहकर चार खमासमणा दे। फिर 'सज्झाय संदिसाहु' और 'सज्झाय करू' कहकर दो खमासमण देकर स्वाध्याय करें।
9 भाष्य की संध्याकालीन गुरुवन्दन विधि ॥ प्रथम इरियावही प्रतिक्रमण कर आदेश मांगकर चैत्यवन्दन करे। उसके बाद मुहपत्ति पडिलेहन कर दो वांदणा दे और उसके बाद दिवस चरिम' का पच्चक्खाण करे और उसके बाद दो वांदणा देकर देवसिक आलोचना करे। फिर दो वांदणा देकर 'अब्भुट्टिनो' से खमावे । उसके बाद 'भगवानह' इत्यादि कह चार खमासमण देकर 'देवसिम पायच्छित्त' का कायोत्सर्ग करे। उसके बाद 'सज्झाय संदिसाहु' ! 'सज्झाय करू ?' का आदेश मांगकर दो खमासमणे देकर सज्झाय (स्वाध्याय) करे।
गुरु अन्य किसी कार्य में व्यग्र हो और द्वादशावर्त वन्दन का योग न हो तो थोभवन्दन से गुरुवन्दन करना चाहिए इस प्रकार वन्दन कर गुरु के पास पच्चक्खाण करना चाहिए। कहा भी है