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श्रावक जीवन-दर्शन/१११ मुडन महोत्सव आदि कराने की बड़े आडम्बर के साथ तैयारी की थी परन्तु राजा-मंत्री आदि के घर शोक हो जाने से यह सब न हो सका।
___ सेठ ने अपनी पुत्री के लिए रत्नजड़ित स्वर्ण के अनेक आभूषण बनाये परन्तु चोर आदि के भय के कारण वह एक दिन भी नहीं पहन सकी।
सर्वमान्य होने पर भी उस कन्या को पूर्वकर्म के दोष के कारण उसे भोजन-वस्त्र आदि की सामग्री भी सामान्यजन के योग्य ही मिल पाती है। कहा भी है
"हे रत्नाकर ! तू रत्नों से भरा हुआ है, फिर भी मेरे हाथ में, मेंढ़क पाया, इसमें तेरा नहीं किन्तु मेरे ही पूर्वकर्म का दोष है ।"
"पुत्री का एक भी महोत्सव नहीं हो पाया" इस प्रकार विचार कर पिता ने.अत्यन्त ही आडम्बर के साथ उसका लग्न महोत्सव प्रारम्भ करवाया, परन्तु उसी बीच उसकी माँ की मृत्यु हो जाने से वर-वधू का पाणिग्रहण बिल्कुल सादगी से ही सम्पन्न हुआ।
लग्न के बाद अत्यन्त उदार और समृद्ध ससुर के घर जाने पर भी और सभी को मान्य होने पर भी पूर्व की तरह नये-नये भय, शोक, बीमारी आदि उत्पन्न होने के कारण वह पुत्री अपने मनपसन्द विषय-सुख को और उत्सव आदि प्रसंग के आनन्द को न पा सकी।
इस प्रकार की स्थिति के कारण वह मन में अत्यन्त उद्विग्न बनी। ऐसी स्थिति से वह धर्मबोध को प्राप्त हुई। एक दिन केवली भगवन्त से पूछने पर उन्होंने कहा कि "तुमने पूर्वभव में थोड़ा भाड़ा (नकरा) देकर जिनमन्दिर आदि की बहुत सी वस्तुओं का उपयोग किया था और बड़ा आडम्बर दिखाया था—इसी दुष्कर्म के कारण यह फल प्राप्त हुआ है।"
केवली के इन वचनों को सुनकर उसने अपने पाप की आलोचना की और अन्त में दीक्षा ग्रहण कर मुक्ति प्राप्त की।
अतः उद्यापन आदि में चढ़ाने के लिए टोपरा, नारियल, लड्ड, आदि वस्तु, जिसका जो मूल्य हो और उसको तैयार कर लाने में जितना द्रव्य लगा हो उससे कुछ अधिक देने से सही मूल्य चुकाया कहा जाता है।
हो ! यदि किसी ने अपने नाम से उद्यापन का आयोजन किया हो परन्तु अपनी आर्थिक शक्ति अधिक न हो तो उद्यापन की विधि के पालन की पूर्ति के लिए अपनी हैसियत के अनुसार जितना (अल्प) मूल्य दे उसमें कोई दोष नहीं है।
ॐ गृह मन्दिर के प्रक्षत आदि की व्यवस्था ॥ अपने घर-मन्दिर में भगवान के सामने रखे गये चावल, सुपारी, नैवेद्य आदि को बेचकर जो रकम प्राप्त हो, उस रकम से अपने स्वयं के मन्दिर के लिए पुष्प, भोग आदि सामग्री नहीं लानी चाहिए और दूसरे जिनमन्दिर में भी स्वयं अपने हाथों से प्रभु पर नहीं चढ़ानी चाहिए बल्कि सही बात बतलाकर पूजा करने वाले लोगों के हाथों से चढ़वानी चाहिए।