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श्रावक जीवन-दर्शन / ४९ वस्त्र का उत्तरासंग । ( ४ ) चक्षु से प्रभु-दर्शन के साथ ही हाथ जोड़ना और (५) मन की
एकाग्रता ।
राजा आदि को मन्दिर में प्रवेश करना हो तो उन्हें ( १ ) तलवार (२) छत्र ( ३ ) वाहन (४) मुकुट और ( ५ ) चामर आदि राजचिह्नों का त्याग करना चाहिए ।
निसीहि – जिनमन्दिर के प्रवेशद्वार पर मन-वचन और काया से गृहस्थ जीवन सम्बन्धी प्रवृत्ति के निषेध के लिए तीन बार 'निसीहि' कहनी चाहिए ।
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तीन बार 'निसीहि' कहने पर भी वह एक ही निसीहि मानी जाती है, क्योंकि इससे सिर्फ सांसारिक प्रवृत्तियों का ही निषेध किया जाता है ।
उसके बाद मूलनायक भगवान को प्रणाम करके, अपने दाहिने हाथ की ओर प्रभु को रखकर ज्ञानादि रत्नत्रयी की आराधना के लिए तीन बार प्रदक्षिणा देनी चाहिए ।
प्रत्येक शुभ कार्य दाहिने हाथ से ही किया जाता है, इस कारण प्रदक्षिणा भी प्रभु के दाहिने हाथ की ओर से ही दी जाती है। कहा भी है
"उसके बाद 'नमो जिरगाणं' कहकर भक्ति से उल्लसित मन से अर्धावनत अथवा पंचांगप्रणिपात करना चाहिए । तत्पश्चात् पूजा के उपकरणों की थाली को हाथ में लेकर गम्भीर और मधुर स्वर से जिनेश्वर भगवन्त के मंगल स्तोत्र बोलते हुए, कदम-कदम पर जीवरक्षा का उपयोगरखकर, प्रभु के गुणों में दत्तचित्त बनकर तीन प्रदक्षिणा देनी चाहिए ।"
गृहचैत्य में प्रदक्षिणा देने की (प्रायः) सुविधा नहीं होती है। संघ के मन्दिर में भी यदि किसी कारणवश प्रदक्षिणा न दे सके तो भी बुद्धिमान् पुरुष उस विधिपालन के अध्यवसाय (परिणाम) को कभी नहीं छोड़ता है ।
प्रदक्षिणा देते समय समवसरण में रहे चतुर्मुख जिनेश्वर भगवन्त का ध्यान करते हुए, गर्भगृह के दाँये-बाँये तथा पीछे के भाग में रहे जिनबिम्ब को वन्दन करना चाहिए ।
चैत्य की रचना समवसरण के स्थानभूत होने से मूल गर्भगृह की तीन दिशाओं में भी मूलनायक जिनबिम्ब के नाम के जिनबिम्बों की स्थापना की जाती है ।
इस प्रकार चारों दिशाओं में जिनबिम्बों की स्थापना होने से 'वर्जयेदर्हतः पृष्ठ' - यानी 'गृहस्थ के मकान की ओर अरिहन्त की पीठ नहीं होनी चाहिए' शिल्पशास्त्र के इस वचन का भी पालन हो जायेगा ।
सम्बन्धी कार्य के त्याग
उसके बाद जिनमन्दिर के प्रमार्जन, हिसाब-किताब आदि की यथायोग्य चिन्तापूर्वक ( जिसका वर्णन आगे करेंगे ।) पूजादि की सामग्री को तैयार कर जिनमन्दिर रूप दूसरी निसीहि मुख्य मण्डप आदि प्रवेश करते समय करनी चाहिए प्रभु को तीन बार प्ररणाम कर पूजा करनी चाहिए । भाष्य में कहा है
उसके बाद मूलनायक
उसके बाद निसीहि कहकर मूलमण्डप में प्रवेश कर परमात्मा के सामने पंचांगप्रणिपातपूर्वक