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श्रावक जीवन-दर्शन/६३ एक फूल के दो भाग नहीं करने चाहिए तथा फूल की कली को नहीं छेदना चाहिए । चंपक और कमल के फूल का भेदन करने से विशेष दोष लगता है। गंध, धूप, अक्षत, फूलमाला, दीप, नैवेद्य, जल तथा उत्तम फल से भगवन्त की पूजा करनी चाहिए। शान्तिकार्य के लिए श्वेत (फूल), लाभ के लिए पीले, शत्रु की पराजय के लिए श्याम, मंगल के लिए लाल और सिद्धि के लिए पाँचों वर्गों के फूलों का उपयोग करना चाहिए। पंचामृत का अभिषेक करना चाहिए। शांति हेतु घी और गुड के साथ दीपक करना चाहिए। अग्नि में नमक का निक्षेप शान्ति व तुष्टि के कार्य में उत्तम समझना चाहिए। खण्डित, सांधे हुए, छिद्र वाले, लाल रंग वाले तथा भयोत्पादक वस्त्र से किया गया दान, पूजा, तप, होम तथा संध्या कर्म निष्फल जाता है । पद्मासन में बैठकर, नासिका के अग्रभाग पर नेत्रों को स्थिर कर, मुखकोश बाँधकर मौन पूर्वक प्रभु की पूजा करनी चाहिए।
* इक्कीस प्रकार की पूजाएँ * १. स्नात्र पूजा २. विलेपन पूजा ३. आभूषण पूजा ४. पुष्प पूजा ५. वासक्षेप पूजा ६. धूपपूजा ७. दीप पूजा ८. फल पूजा ६. अक्षत पूजा १०. पत्र पूजा ११. सुपारी पूजा १२. नैवेद्य पूजा १३. जल पूजा १४. वस्त्र पूजा १५. चामर पूजा १६. छत्र पूजा १७. वाजिंत्र पूजा १८. गीत पूजा १६. नृत्य पूजा २०. स्तुति पूजा २१. कोशवृद्धि पूजा
जिनेश्वर की ये इक्कीस प्रकार की पूजाएं प्रसिद्ध हैं तथा सुर-असुरों के द्वारा भी सदा की जाती हैं। कलिकाल के प्रभाव से दुष्ट बुद्धि वालों ने इनका खण्डन किया है। जो-जो प्रिय वस्तु हो, उसका भाव से पूजा में उपयोग करना चाहिए। उमास्वाति वाचक कृत यह पूजा प्रकरण है, ऐसी प्रसिद्धि है।
विवेकविलास में कहा है—'ईशानकोण में देवगृह होता है।' विषम आसन पर बैठकर, पैर ऊपर चढ़ाकर उत्कटासन से बैठकर, बायें पैर को ऊँचा करके एवं बायें हाथ से प्रभुपूजा नहीं करनी चाहिए। शुष्क, जमीन पर गिरे हुए, बिखरी हुई पंखुड़ी वाले, अशुभ वस्तु या पुरुष से स्पर्श किये हुए, तथा अनखिले फूलों से प्रभुपूजा नहीं करनी चाहिए। कीड़ों के द्वारा जिनका मध्य भाग नष्ट किया गया हो, सड़े हुए, बासी, मकड़ी के जाले जिसमें बंधे हों, जो नेत्र को अप्रिय लगे, दुर्गन्धित, सुगन्धरहित, खट्टी गन्ध वाले, मल-मूत्र करते वक्त जो अपने पास में रह गये हों। ऐसे फूलों का त्याग करना चाहिए।
विस्तृत पूजा के अवसर पर प्रतिदिन अथवा पर्व दिनों में तीन, पांच और सात कुसुमांजलि पूर्वक परमात्मा का स्नात्र महोत्सव (स्नात्र पूजा) करनी चाहिए।